धर्म, डेस्क रिपोर्ट। भारत देश संस्कृति और परम्पराओं का देश है। एक ऐसा देश है जहां न केवल भगवान पूजे जाते हैं बल्कि पेड़ और जानवरों का भी पूजन होता है। त्योहारों पर विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं, भोग के रूप में उन्हें अपने आराध्य को अर्पित किया जाता है और सभी लोग साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं।
यूं तो दिवाली का पूजन अमावस्या के दिन होता है, पर इस त्योहार की तैयारी और खुशियां लगभग हफ्ते भर चलती हैं। धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन कर सभी लोग रिद्धि सिद्धि, धन, वैभव की प्रार्थना करते हैं
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दिवाली के अगले दिन लोग सुबह उठकर गौशाला जाकर वहां से गोबर लेकर आते हैं। लाल रंग की गेरू मिट्टी से अपने घर के आंगन को लीपकर उसपर गोवर्धन पर्वत का एक प्रारूप बनाते हैं। घर में उटती कढ़ी की खुशबू चारों ओर फैल जाती है। कच्चा भोजन तैयार कर सभी परिवार जन एक साथ बैठकर गोवर्धन की पूजा करते हैं, भोग लगाते हैं और फिर परिक्रमा कर साथ बैठ कर भोजन करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि गोवर्धन की पूजा कैसे शुरू हुई और इस दिन को क्यूं मनाया जाता है?
आइए जानें…
पुराणों के अनुसार जब भगवान कृष्ण छोटे थे तो उन्होंने देखा कि सभी बृजवासी इंद्रोत्सव मानते हैं, जिसमे वे वर्षा के देवता इंद्र को विभिन्न प्रकार के भोग लगाते हैं। कहते हैं इस इंद्रोत्सव को करने के लिए प्रत्येक गांव से एक व्यक्ति को आयोजन को जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। जिस वर्ष कृष्ण को इस आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई उन्होंने इसे निभाने से मना कर दिया। कृष्णा ने कहा यह त्योहार बृजवासी इंद्र के डर से मानते हैं न कि भक्तिभाव से, अगर सभी को पूजन करना है तो अपने पास के पेड़ पौधों का, गौ माता और ग्वालों का और यह गोवर्धन पर्वत की करो जो हमें सुरक्षित रखते हैं। लोगों को भगवान कृष्ण की बात पर विश्वास हुआ और उस वर्ष सभी ने इंद्र की पूजा नहीं की। इस बार से क्रोधित इंद्र ने विशाल प्रलयमयी काले बादलों को बृज में जाकर पूरा गांव डुबो देने का आदेश दिया। बारिश और तूफान से बेहाल लोगों को जब कहीं कोई आसरा नहीं दिखा तब भगवान कृष्ण ने अपने उल्टी हाथ को छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर सभी की रक्षा की। ये देखकर इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने भगवान कृष्ण से माफी मांगी। तबसे यह गोवर्धन का पर्व मनाया जाता है।
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कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाने वाली गोवर्धन पूजा में छप्पन प्रकार के पकवान (अन्नकूट) बनाए जाते हैं। पूजन के दौरान गोवर्धन का हल्दी रोली चावल से पूजन किया जाता है। पूजन के बाद बनाए गए पकवानों में से गोवर्धन को भोग अर्पित किया जाता है। भोग अर्पित कर जल पिलाने के बार गोवर्धन से सभी लोग सुरक्षा, सुख और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद सभी गोवर्धन की इच्छानुसार परिक्रमा कर ढोग लगा भोजन पाते हैं।
आइए जाने क्या हैं गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त-
बात करें गोवर्धन पूजा के प्रातःकाल मुहूर्त की तो यह सुबह 06:36 am से 08:47 am से रहेगा। वहीं गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त – की तो यह 03:22 pm से 05:33 pm तक रहेगा।
आइए जानें गोवर्धन पूजा कैसे करें।
1.सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का प्रारूप बनाएं।2
.रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें।3
3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप कर भगवान श्री कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करें।
4.भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाएं।5.इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आरती करें।