मां अन्नपूर्णा के महाव्रत से पूरी होती है मनोकामनाएं, जानें महत्व और व्रत से जुड़ी ये रोचक बातें

भावना चौबे
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Maa Annapurna Vrat 2023: हिंदू धर्म में हर व्रत-त्यौहार का विशेष महत्व है। हर व्रत को लेकर कुछ ना कुछ मान्यताएं जरूर रहती हैं। ऐसे ही कई मान्यताएं अन्नपूर्णा व्रत को लेकर बताई गई है। मां अन्नपूर्णा को अनाज की देवी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है की मां अन्नपूर्णा की पूजा करने और व्रत रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है और मां के आशीर्वाद से घर में अन्न का भंडार भरा रहता है।

कब है अन्नपूर्णा व्रत?

सनातन धर्म में हर साल मां अन्नपूर्णा के नाम का व्रत रखा जाता है। यह व्रत 17 दिनों तक चलता है। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस साल 2 दिसंबर, दिन शनिवार से व्रत की शुरुआत हो चुकी है और इसका समापन 17 दिनों के बाद यानी 18 दिसंबर, दिन सोमवार को होगा। यह व्रत रखने से अन्य की देवी माता अन्नपूर्णा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

जानें, अन्नपूर्णा व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में मां अन्नपूर्णा के व्रत का विशेष महत्व है। इस खास अवसर पर काशी में स्थित माता अन्नपूर्णा देवी के मंदिर में भक्तों की भारी संख्या में भीड़ लगती है। व्रत के पहले दिन मां अन्नपूर्णा देवी के मंदिर में दर्शन किया जाता है। उसके बाद मंदिर में 17 गांठ के धागे को बाजू पर बांधा जाता है। इसे मां के आशीर्वाद के रूप में 17 दिनों तक हाथ में बांधा जाता है। अगर कोई भक्त किसी कारणवश काशी में स्थित माता अन्नपूर्णा देवी के मंदिर नहीं जा पाता है, तो वह अपने घर पर मां अन्नपूर्णा की फोटो के सामने पूजा कर सकत हैं। उसके बाद 17 गांठ वाला धागा अपने हाथों में बांध सकता हैं। शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार 17 साल, 17 महीने या 17 दिनों तक का संकल्प लिया जाता है।

यह व्रत थोड़ा कठिन होता है क्योंकि इस व्रत के दौरान 17 दिनों तक अन्न का त्याग करना होता है। दिन में सिर्फ एक बार फल खा सकते हैं यानी सिर्फ एक बार फलहार करने की मान्यता है। ध्यान रखें की फलहार में नमक का सेवन न करें। इस व्रत को लेकर ऐसा कहा गया है कि जो भी व्यक्ति विधि विधान और नियमों के साथ इस व्रत का पालन करता है, उसका भाग्य 17 दिनों में चमक उठता है और जीवन की सारी परेशानियां धीरे-धीरे खत्म होने लगती है।


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भावना चौबे

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