नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन कर दिया गया है। चीफ जस्टिस रंजन गगोई समेत पांच जजों की बेंच अयोध्या विवाद पर सुनवाई करेगी। सुनवाई 10 जनवरी को होनी है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवादित मामले के में जमीन पर मालिकाना हक के लिए सुनवाई के लिए नई बेंच के गठन का एलान किया था।
चीफ जस्टिस रंजन गगोई समेत पांच जजों की बेंच में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस एन. वी. रमन्ना, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल हैं। इससे पहले शुक्रवार को चीफ जस्टिस रंजन गगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने बिना किसी पक्ष की दलील सुने 30 सेकेंड में ही सुनाई को आगे बढ़ा दिया था। सुनवाई के लिए मामला सामने आते ही मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला है और इस पर आदेश पारित किया. अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और राजीव धवन को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला।
पिछली बार हुई सुनवाई में हिन्दू महासभा के वकील का कहना था कि हम 10 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच के समक्ष अपनी बात रखेंगे और मामले में रोजाना सुनवाई की अपील करेंगे। उन्होंने बताया कि इस मामले में दोनों तरफ से अपना-अपना पक्ष रखा जा चुका है. डॉक्युमेंट्स का आदान-प्रदान हो चुका है। ट्रांसलेशन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। हिन्दू महासभा के वकील ने बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 90 दिनों में रोजाना सुनवाई कर अयोध्या मामले में अपना फैसला दिया था।इसलिए सुप्रीम कोर्ट से यह अपील है कि अगर मसले पर दोनों पक्ष सहयोग करें तो 60 दिन के अंदर फैसला आ सकता है।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है।