नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह का साफ तौर पर कहना है कि मध्य प्रदेश में आरक्षण की जिस प्रक्रिया को लेकर उच्च न्यायालय ग्वालियर की खंडपीठ ने दो नगर निगम मुरैना और उज्जैन व 79 नगरीय निकायों के अध्यक्ष पद पर आरक्षण को लेकर आपत्ति जताई है उसमें कुछ भी गलत नहीं है और राज्य सरकार ने सब कुछ नियमानुसार किया है। पिछली बार भी इसी प्रकार से रोटेशन प्रक्रिया की गई थी। अब सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी ताकि स्टे निरस्त हो सके और चुनाव जल्द से जल्द कराए जा सके।
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राज्य सरकार ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में स्पेशल पिटीशन लीव (Special Petetion Leave) एसएलपी दायर कर दी है। सुप्रीम कोर्ट इसे स्वीकार करने के साथ ही इसे सुनवाई करेगा। राज्य सरकार का तर्क है कि उसके द्वारा जो प्रक्रिया अपनाई गई है वह विधि सम्मत है और संविधान में जो नगरीय निकायों के बारे में अनुच्छेदों में प्रावधान किए गए हैं, उनमें यह प्रक्रिया दी गई है। उसी का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में अब यह अपील की जाएगी कि हाई कोर्ट के निर्णय को निरस्त किया जाए और उसके बाद नगरीय निकायों के चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।
दरअसल हाईकोर्ट ने ही राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह 3 महीने के भीतर चुनाव करवाए जिसके बाद राज्य सरकार ने अंतिम मतदाता सूची का 3 मार्च को प्रकाशन कर दिया था और इस बात की पूरी संभावना बन गई थी कि 15 मार्च तक नगरीय निकाय चुनावों की घोषणा कर दी जाएगी और अप्रैल तक चुनाव कराने लिए जाएंगे। लेकिन अब संभावनाएं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी हैं और यदि यह निर्णय सरकार के पक्ष में आता है तो सरकार अप्रैल के प्रथम माह में चुनाव की घोषणा कर सकती है।
यहां पढ़े आखिर ग्वालियर हाईकोर्ट ने क्यों दिया था स्टे
हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ (Gwalior High Court) ने 81 नगरीय निकायों में चुनाव से पहले आरक्षण प्रक्रिया (reservation process) पर शनिवार को रोक लगा दी थी। 2020 में 10 दिसंबर को जारी किए गए नोटिफिकेशन में अनुसूचित जाति (scheduled caste), जनजाति (scheduled tribe) के लिए लगातार दूसरी बार यह सीटें आरक्षित कर दी गई थी। हाईकोर्ट के इस आदेश से मुरैना (Morena) और उज्जैन (Ujjain) के महापौर (Mayor) और 79 नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण प्रभावित हो गया। हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रोटेशन पद्धति को अपनाते हुए आरक्षण करने पर किसी प्रकार की रोक नहीं रहेगी और तब तक चुनाव प्रक्रिया जारी नहीं की जा सकेगी।
जस्टिस शील नागू और जस्टिस आनंद पाठक की डिवीजन बेंच ने कहा कि रोटेशन पद्धति की अनदेखी करते हुए अध्यक्ष पद का आरक्षण किया गया है। इससे एक वर्ग का व्यक्ति लगातार दो बार चुनाव लड़ सकेगा और गैर आरक्षित वर्ग के व्यक्ति को प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिलेगा। इसके पहले हाईकोर्ट डबरा नगरपालिका और और इंदरगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष के आरक्षण पर भी रोक लगा चुका है।