Dabra news : सिसकता शहर, मरता विकास ।

डबरा, डेस्क रिपोर्ट। एक समय की बात है की डबरा अपनी मिठास के लिए पूरे देश में पहचाना जाता था, इस शहर के विकास के किस्से यूं थे कि जब भारत वर्ष में लोग बिजली आने का कई दिन तक इंतजार करते थे तब यहां शुगर फैक्ट्री में 24 घंटे बिजली पानी की व्यवस्था थी। प्राथमिक चिकित्सा की बात करें तो आस पास के कई जिलों से बेहतर यहां स्वास्थ सुविधाएं थीं। शुगर फैक्ट्री जब तक चली तब तक डबरा के विकास का पहिया घूमता रहा।आज डबरा के पुराने लोग जब बीते दिनों को याद करते हैं तो उनके चेहरे और शब्दों में सिर्फ मायूसियत ही होती है।

भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी शहर में आगे बढ़ रहे हैं और विकास की बात तो शहर केवल पिछड़ता जा रहा है। आए दिन लड़ाई झगडे की वारदातें, सड़कों पर गंदगी, वाहनों का जाम और प्रशासन की नाकामयाबी इस शहर की पहचान बनती जा रही है। एक समय पूरे प्रदेश में अपनी पहचान रखने वाली डबरा नगरपालिका तो मानो कुंभकरण की नींद में सोगयी है जिसे ना तो शहर की अव्यवस्था दिखती है, ना ही नगरपालिका के कामों में होता हुआ भ्रष्टाचार। बीच सड़क पर लगे हुए ठेले, सर्विस रोड को घेरकर दुकानदारों द्वारा किया जा रहा काम, जगह जगह गंदगी के ढेर, जगह जगह खुदी हुई सड़कें अव्यवस्थित ट्रैफिक और भड़ता हुआ अतिक्रमण मानो अब आम बात हो चुकी है।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।