अधिकमास जो हर 3 साल में एक बार आता है। अधिक मास मूलतः भक्ति का महीना है। हिंदू ग्रंथ धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु में अधिक मास से जुड़े कई नियम बताए गए हैं। अधिक मास में नित्य, नैमित्तिक और काम्य तीनों तरह के कर्म किए जा सकते है। आश्विन मास होने से इस अधिक मास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान की पूजन हवन मन्त्र जाप करना अति फलदायी माना गया है। मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश और यज्ञोपवित आदि को छोड़ कर शेष सभी नैमित्तिक (किसी विशेष प्रयोजन के), काम्य (आवश्यक) और नित्य (रोज किए जाने वाले) कर्म किए जा सकते हैं।
अधिक मास में क्या कर सकते हैं
इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत कथा,देवी भागवत, शिव पुराण,नर्मदा पुराण विद्वत ब्राह्मण द्वारा करवाना चाहिए या सभी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन स्वयं करना चाहिए। विष्णु यज्ञ, मन्त्र ,जाप आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है। संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। अगर किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत हो चुकी है तो उसे किया जा सकता है। विवाह नहीं हो सकता है, गृह प्रवेश नहीं कर सकते हैं लेकिन नया मकान अगर लेना चाहें तो उसकी बुकिंग की जा सकती है, प्रॉपर्टी खरीदी जा सकती है। अगर कोई बड़ा सौदा करना हो तो टोकन देकर उसे किया जा सकता है। फाइनल डील कोई मुहूर्त देखकर की जा सकती है।
अधिक मास क्या नहीं करना चाहिए
इस माह में कोई प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना, विवाह, मुंडन, नववधु गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, नामकरण, कर्म करने की मनाही है।
अधिमास का महत्व क्यों है?
आचार्य पं अंकित मार्कण्डेय जी बताया कि हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।