Bhopal Gas Tragedy : 37 साल बाद भी ताजा है भीषण औद्योगिक आपदा की याद, आज भी सुनकर काँप जाती है रूह

Kashish Trivedi
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आज भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas tragedy) को बीते 37 वर्ष का समय हो चूका है। फिर भी ये त्रासदी (tragedy) विश्व के विभत्स घटनाओं में शुमार है। सरकार द्वारा गैस पीड़ितों के लिए कई राहत योजनाओं की शुरुआत की गई है। बावजूद इसके आज भी लोग अपने अधिकारों की मांग करते हुए आरोपियों की सजा की मांग करते हैं। वहीँ आज भी कुख्यात भोपाल गैस रिसाव त्रासदी को दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं (industrial disasters) में से एक बताया जा रहा है।

यह दुखद घटना भोपाल शहर में यूनियन कार्बाइड के सहायक कीटनाशक संयंत्र में हुई थी, जब घातक मिथाइल आइसो-सायनेट (MIC) एक दोषपूर्ण वाल्व के कारण रात में लीक हो गया और पूरे शहर में हजारों लोगों इसके प्रभाव में आ गए थे। हजारों लोग मौत से बचने के लिए भोपाल से बाहर भागे और जो कारखाने के आसपास के क्षेत्र में नहीं जा सके। वे या तो मर गए या अपाहिजों का जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए।

इस गैस रिसाव में लगभग 25,000 लोगों से अधिक की जान चली गई। जिनमें से 3,500 से अधिक लोगों की घटना के तुरंत बाद मृत्यु हो गई। इस आपदा के तीन दशक बाद भी, बचे लोग सांस लेने में तकलीफ और अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं। भोपाल गैस पिडिट संगठन (भोपाल गैस पीड़ित संगठन) 30 वर्षों से अधिक समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।

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आइए एक नजर डालते हैं 

  • यह घटना 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को हुई। जब संयंत्र से लगभग 42 टन जहरीला मिथाइल आइसोसाइनेट निकल गया। जिससे 6,00,000 से अधिक लोग जहरीली गैसों के संपर्क में आ गए।
  • यह रासायनिक घटना मिथाइल आइसोसाइनेट युक्त टैंक में पानी के प्रवेश के कारण हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप एक केमिकल रिएक्शन हुई, जिसके परिणामस्वरूप टैंक के अंदर तापमान में वृद्धि हुई।
  • टैंक के भीतर का दबाव टैंक को झेलने के लिए बनाया गया था। जिसके परिणामस्वरूप भारी मात्रा में जहरीली गैसें पर्यावरण में लीक हो गईं।
  • सुबह करीब 1 बजे लोगों के फेफड़ों में दम घुटने और जलन के साथ नींद खुली। जिसके बाद बड़ी दहशत पैदा हो गई और अफरातफरी मच गई, जिससे भगदड़ भी मच गई।
  • इस दौरान आम जनता को कोई चेतावनी नहीं दी गई और यहां तक ​​कि कारखाने में आपातकालीन अलार्म भी लगभग 2:30 बजे शुरू हो गए।
  • भोपाल शहर को हिला देने वाली इस रासायनिक आपदा में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई। इस दुर्घटना का सबसे ज्यादा शिकार यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) संयंत्र के पास झुग्गी बस्तियों के लोग थे।
  • जिस क्षण यह घटना हुई, उसी क्षण हजारों लोगों की जान चली गई। बाद में मरने वालों की संख्या बढ़कर लगभग 25,000 हो गई, जहां 5,00,000 लोग घायल हो गए, जिनमें से कई स्थायी रूप से घायल हो गए।
  • इस आपदा के 30 साल बाद भी दुख अभी भी जारी है। वहां के लोग अभी भी इस त्रासदी के बाद के प्रभावों से जूझ रहे हैं। बच्चे जन्म प्रभाव के साथ पैदा होते हैं, वहीँ कई शारीरिक और मानसिक विकलांगता से पीड़ित होते हैं।
  • यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन और उसके तत्कालीन सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ भोपाल के जिला न्यायालय में कई दीवानी और आपराधिक मामले लंबित हैं, लेकिन पीड़ितों को कोई न्याय नहीं दिया गया जो या तो अपनी चोटों के कारण दम तोड़ चुके हैं या अभी भी जीवित रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
  • वहीँ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों का कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा भोपाल गैस त्रासदी में से बचे लोगों के लिए न्याय का इंतजार आपदा की 37वीं बरसी पर जारी है और बाद की सरकारों ने हार मान ली है।
  • कई अधिकार संगठन दशकों से त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों को कठोर और अनुकरणीय दंड देने, पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा, एक उचित पुनर्वास योजना और बचे लोगों के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं और संयंत्र परिसर में पड़े जहरीले रसायनों को हटाने की मांग कर रहे हैं।

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वर्ष 2006 में अदालत में दायर राज्य सरकार के एक हलफनामे के अनुसार, इस त्रासदी में 3,787 लोग मारे गए थे और राज्य की राजधानी में 5.58 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे, जब पूर्ववर्ती यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जो कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर को मध्यरात्रि में त्रासदी के बाद बंद हो गया था। हालांकि, पीड़ितों के लिए लड़ने वाले संगठनों का दावा है कि इस त्रासदी में कम से कम 25,000 लोग मारे गए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा अप्रैल, 2019 में जारी एक रिपोर्ट ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी को 20वीं सदी की दुनिया की ‘प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं’ में से एक करार दिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से जारी कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया था।


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