MP Breaking News
Wed, Dec 17, 2025

Success Story: भारत की पहली वीरांगना थी रानी अवंती बाई लोधी, तलवारबाजी और घुड़सवारी में महारत थी हासिल

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
मई 1857 में प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रारंभ में रानी अवंती बाई लोधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त संघर्ष की शुरुआत की। पढ़ें विस्तार से पूरा इतिहास...
Success Story: भारत की पहली वीरांगना थी रानी अवंती बाई लोधी, तलवारबाजी और घुड़सवारी में महारत थी हासिल

Success Story : रानी अवंती बाई लोधी एक महान वीरांगना और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 16 अगस्त 1831 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम मनकेहणी में हुआ। उनके पिता राव जुझार सिंह जमींदार थे और उनकी मां का नाम कृष्णा बाई था। अवंती बाई ने अपनी बाल्यावस्था में ही तलवारबाजी और घुड़सवारी में महारत हासिल की थी। उनका विवाह रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह से हुआ। विक्रमादित्य सिंह के अस्वस्थ होने के बाद रानी अवंती बाई ने राज्य के प्रशासन की जिम्मेदारी संभाली। बता दें कि उनके दो पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह थे।

इन लोगों को दी चेतावनी

मई 1857 में प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रारंभ में रानी अवंती बाई लोधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की। उन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने और स्वाभिमान जागृत करने के लिए विभिन्न राजाओं, जमींदारों और मालगुजारों को पत्र लिखे, जिसमें उन्होंने उनसे अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने की अपील की और चेतावनी दी कि वे या तो अपने देश की रक्षा के लिए संघर्ष करें या चूड़ियां पहनकर घर में बैठ जाएं। रानी अवंती बाई ने मई 1857 में रामगढ़ में एक क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें राजाओं, जमींदारों और मालगुजारों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने का प्रयास किया। इसके बाद, रानी ने अपनी सेना के साथ गुजरी, रामनगर और बिछिया क्षेत्रों से ब्रिटिश नियंत्रण समाप्त कर दिया।

नहीं किया आत्मसमर्पण

23 नवंबर 1857 को खैरी के प्रसिद्ध युद्ध में रानी अवंती बाई लोधी और उनकी सेना ने मंडला के डिप्टी कमिश्नर वडिंगटन की फौज को हराया। रानी अवंती बाई लोधी ने अंग्रेजों की सेना के सामने कभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया। रानी अवंती बाई लोधी ने मृत्यु से पहले ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को इस विद्रोह के लिए उकसाने की बात स्वीकार की और यह भी बताया कि वो सभी लोग निर्दोष हैं। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों को फांसी से बचाया।

सम्मान में डाक टिकट जारी

वहीं, 20 मार्च 1858 को देवहारीगढ़ के युद्धभूमि में रानी ने स्वाभिमान, साहस, वीरता, स्वतंत्रता और मातृभूमि प्रेम का संदेश देते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता और बलिदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया। उनकी यादों को सहेजने के लिए भारत सरकार ने 1986 और 2001 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए।