Daughter Day 2021 : MP का ये गांव हैं बिटिया गांव, घर के दरवाजे पर बेटी की नेमप्लेट

Atul Saxena
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बैतूल,वाजिद खान। मान्यता है कि बेटी घर की लक्ष्मी होती है, जिस घर में बेटी होती है वहां सौभाग्य होता है। मध्यप्रदेश के एक समाजसेवी भी कुछ ऐसा ही सोचते थे और जब उनके घर बिटिया पैदा हुई तो उन्होंने कुछ अलग करने की सोची।  आज उनकी सोच मध्यप्रदेश के 22 जिलों में अलख जगा रही हैं इतना ही नहीं उनका अभियान 14 राज्यों तक पहुँच गया है।

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बैतूल के समाजसेवी अनिल यादव के घर जब बेटी पैदा हुई तो उन्होंने खुशियां मनाई और उसी दिन उन्होंने “लाडो फाउंडेशन” बना कर एक अनोखी पहल की शुरूआत की।  यह पहल थी बेटियों के नाम से घर की पहचान हो। अनिल ने इसकी शुरुआत बैतूल से की और धीरे-धीरे यह अभियान आगे बढ़ता गया। अनिल का अभियान देश के 14 राज्यों में पहुंच गया है। अनिल की माने तो मध्य प्रदेश के 22 जिलों में उनके अभियान ने दस्तक दे दी है । अनिल का कहना है कि बैतूल शहर के अलावा जिले के 100 गांव में उनका अभियान पहुंच गया है और इन गांव में बेटियों के नाम से घर की पहचान होती है ।

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दरअसल बेटियों को सम्मान दिलाने के लिए अनिल यादव ने अनोखा अभियान चलाया है। इस अभियान के तहत जिन घरो में बेटियां हैं उन घरों पर बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाई गई हैं । बैतूल के 80 घरों वाले इस गांव में लगभग 100 बेटियां हैं, इन बेटियों को समाज में अलग पहचान दिलाने के लिए इनके घर की नेम प्लेट इनके नाम की होती है। अपने नाम की नेम प्लेट लगने से बेटियां भी खुश हैं, क्योंकि अब उनका घर उनके नाम से जाना जाता है। लोग अब इस गांव को बिटिया गांव के नाम से जानते हैं।

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लाडो फाउंडेशन ने घरों के नामकरण बेटियों के नाम से करने वाले कार्यक्रम को उत्सव जैसा मनाया गया, पहले बेटियों के पैर पखारे और तिलक लगाकर उनकी आरती की गई। इसके बाद बेटियों को उनके नाम की नेमप्लेट दी गई मासूम बेटियों के साथ बड़ी बेटियां भी हाथों में नेम प्लेट लिए खुश नज़र आईं। सभी बेटियां रैली के रूप में गांव में घूमी और घरों घर जाकर उनके नाम की नेम प्लेट लगाई गई ।

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गौरतलब है कि सितम्बर महीने के चौथे रविवार को बिटिया दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को बेटियों  स्नेह और सम्मान के प्रति जागरूक करना है।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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