इंदौर, आकाश धोलपुरे। मध्यप्रदेश में 11 वीं और 12 वीं की पढ़ाई 16 माह के कोरोना संकट काल के बाद बीते सोमवार से शुरू हो गई है। हालांकि सरकार ने स्कूलों को खोलने को लेकर कुछ निश्चित नियम बनाये जिसके बाद ही स्कूल खोले गए हैं। इस बीच देशभर के अन्य राज्यों की तर्ज पर मध्यप्रदेश सरकार के लिए विशेष समूह के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई शुरू करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। हम बात कर रहे हैं उन मूक बधिर और दृष्टि बधित स्टूडेंट्स की जिनकी ऑनलाइन कक्षाएं भी प्रभावित हुई हैं, लेकिन अब तक उनकी पढ़ाई के लिये कुछ विशेष कदम नहीं उठाये गए हैं।
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बात की जाए मध्यप्रदेश की तो यहां 50 से ज्यादा शासकीय शिक्षण संस्थानों/होस्टल में करीब 5 हजार से ज्यादा मूक और दृष्टि बधित स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। वही इंदौर में एक शासकीय संस्थान और 4 एनजीओ सहित कुल 9 संस्थान के माध्यम से मूक बधिर दिव्यांगों को शिक्षा दी जाती है। इंदौर के परदेशीपुरा क्षेत्र में संचालित किए जाने वाले स्कूल शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बधिरता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के भी कोरोना काल मे बुरे हाल हैं। सामाजिक न्याय एवं कल्याण विभाग द्वारा संचालित ये स्कूल मार्च 2020 से ही बंद है।
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स्कूल के अधीक्षक पवन चौहान ने बताया कि दृष्टि व श्रवण बधित बच्चों की पढ़ाई का खासा नुकसान हुआ है, क्योंकि स्पेशल कैटेगरी के बच्चो की पढ़ाई के तरीके आम बच्चों की पढ़ाई से अलग होते हैं। हालांकि, स्कूल द्वारा ऑनलाइन शिक्षण की व्यवस्था की गई थी लेकिन उसके शत-प्रतिशत परिणाम स्वाभाविक तौर पर बेहतर नहीं होते हैं। दरअसल, स्पेशल बच्चों को पढ़ाने का तरीका अलग होता है लिहाजा, ऑनलाइन शिक्षण की व्यवस्था ऐसे स्टूडेंट्स को रास नही आ रही है। स्कूल अधीक्षक पवन चौहान ने बताया कि स्कूल के साथ ही होस्टल भी संचालित किया जाता है लेकिन कोरोना की सख्त गाइडलाइन के चलते होस्टल मि गतिविधियां बंद कर बच्चों के अपने अपने घर भेज दिया गया था। उन्होंने बताया कि स्कूल में कुल 94 बच्चे हैं जिनमे 84 बच्चे जिले के बाहर रहते हैं। वही डे केयर की श्रेणी में केवल 10 स्टूडेंट्स है जिनकी पढ़ाई के लिए स्कूल योजना तैयार कर रहा है और सरकार के निर्देश के बाद कम से कम डे केयर शिक्षण शुरू कराया जा सकेगा। बता दें कि इन्ही 94 स्टूडेंट्स में से 60 बच्चे मूक बधिर हैं तो 34 बच्चे दृष्टि बधित, ऐसे में सभी बच्चों के पालक उनके भविष्य को लेकर चिंतित है।
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ऐसी ही शिक्षिका भावना सिंह अपनी 10 वर्षीय मूक बधिर बेटी को लेकर कुछ साल पहले इंदौर इसलिए शिफ्ट हुई थी ताकि उनकी मासूम का भविष्य सुरक्षित किया जा सके। वहीं कोरोना ने मासूम बेटी की पढ़ाई में ऐसी बाधा डाली है कि अब माँ को अपनी बेटी की चिंता सता रही है। शिक्षिका की मानें तो स्पेशल बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षण महज एक दिलासा है क्योंकि उन्हें तो स्कूल में ही सबकुछ समझ में आता है। ऐसे में उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि जल्द ही वो स्कूल शुरू करें।
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हालांकि, मूक, श्रवण व दृष्टि बधित स्टूडेंट्स के स्कूल शुरू करने में सरकार को इसलिए भी कठिनाई आ सकती है क्योंकि स्पर्श के बिना उन्हें पढ़ाई करना एक बड़े टास्क के समान होगा। क्योंकि छूकर ही बच्चे अक्षर ज्ञान को ध्यान में रखते है। फिलहाल, आम बच्चों के साथ, खास बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाना कोरोना की तीसरी लहर के चलते प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।