भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। पूरे देश में कोरोना (corona) के चलते रेमडेसिवीर को लेकर अफरा-तफरी मची हुई है। कोरोना इस कदर हावी हो रहा है कि अस्पतालों (hospitals) में न बेड बचे हैं ना कोरोना से लड़ने के लिए ज़रूरी सुविधाएं। जिस तरह से पिछले साल कोरोना काल मे ‘सेनिटाइजर’ शब्द खूब चलन में आया था कुछ वैसे ही अभी ‘रेमडेसिवीर’ (remdesivir) का नाम हर तरफ सुनने को मिल रहा है। रेमडेसिवीर की किल्लत (shortage), रेमडेसिवीर की कालाबाजारी (black marketing), रेमडेसिवीर की चोरी (stealing), ऐसी कई घटनाएं आजकल खूब सुनने में मिल रही हैं। आखिर है क्या ये रेमडेसिवीर? आइए जानते हैं।
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रेमडेसिवीर एक तरह की एंटीवायरल दवा है जो अमेरिकी दवा कम्पनी गिलियड साइंसेज द्वारा निर्मित है। आपको बता दें कि आज से करीब एक दशक पहले जब हेपिटाइटिस सी और सांस संबंधी वायरस की बीमारी फैल रही थी तब इनके इलाज के लिए रेमडेसिवीर को बनाया गया था लेकिन उस वक़्त इसे बाजार में आने की अनुमति नहीं दी गयी थी। वहीं अब रेमडेसिवीर को कोरोना के खिलाफ रक्षासूत्र के तौर पर देखा जा रहा है। यही कारण है कि लोग कोरोना की दूसरी लहर में रेमडेसिवीर पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। बता दें कि जिन मरीजों में कोरोना का गंभीर लक्षण देखे जाते हैं उन्हें इस दवाई का डोज़ दिया जाता है। हालांकि WHO ने नवम्बर में ही साफ कर दिया था कि रेमडेसिवीर को कोरोना के सटीक इलाज के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
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रेमडेसिवीर को कोरोना के खिलाफ रक्षा सूत्र माना जाने के कारण ही लोग इस दवा को किसी भी हाल में हांसिल करना चाहते हैं। यूं तो गिलियड साइंसेज ने रेमडेसिवीर को इबोला वायरस के खिलाफ इस्तेमाल के लिए बनाया था लेकिन अब माना जाता है कि ये अन्य वायरस जिसमे कोरोना वायरस भी शामिल है, के खिलाफ भी कारगर है। इसी कारण बाजार में इसकी मांग बेहद बढ़ गयी है। भारत में ये दवा जाइडस कैडिला, सिप्ला, माइलैन, हेटेरो, जुबिलेंट लाइफ साइंसेज, सन फार्मा, डॉ रेड्डीज आदि कई कंपनियों द्वारा बनाई जाती है।