भोपाल। भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले सवर्णों को रिझाने के लिए 10 फीसदी आरक्षण का चुनावी कार्ड खेला है। राजनीति के जानकार इसे सिर्फ शिगुफा मान रहे हैं। लेकिन इस शिगुफे के सहारे बीजेपी लोकसभा की नैया पार करने का पूरा इरादा कर चुकी है। विधानसभा में सरकार बनाने से चूकी बीजेपी को अब इस कदम से बड़ी उम्मीद है। एमपी में हार का एक बड़ा कारण सर्वणों की नाराजगी को माना जा रहा है। सबसे अधिक प्रभाव पार्टी को चंबल में देखने को मिला है। यहां विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा। जबकि 2013 के चुनाव में बीजेपी को यहां से 20 सीटें मिली थी। माना जा रहा है अगर यह बिल पास हुआ तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लाभ मिल सकता है। और अगर यह बिल अटक भी गया तो पार्टी फिर इस मुद्दे पर वोट मांगेगी और एक बार फिर आश्वासन देगी।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चंबल, महाकौशल, बुंदेलखंड और मालवा से सबसे अधिक सीटों का नुकसान हुआ है। यहां सवर्णों का गुस्सा हार का कारण बना है। प्रदेश के अलावा केंद्रीय नेता भी इसकी चपेट में आएं हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और थावर चंद गहलोत के होने के बावजूद पार्टी को झटका लगा। केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी गहलोत के बेटे को रतलाम सीट से हार का सामना करना पड़ा। अब इन दोनों मंत्रियों को भी भरोसा है कि सरकार के इस कदम से सवर्णों की नाराजगी दूर होगी। नाम गुप्त रखने की शर्त पर बीजेपी के बड़े नेता ने बताया कि मध्य प्रदेश आरएसएस की लैब की तरह है। पार्टी की हार के बाद मिले फीडबैक को बहुत गंभीरता से लिया गया है। हम 22 ऐसी सीटें विस चुनाव में हारे हैं जहां नोटा से भी कम अंतर रहा है। हम कांग्रेस से सिर्फ 4 और जीत से सात सीट दूर रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व सीएम चौहान के माई के लाल वाले बयान के कारण सवर्णों में उबाल था। जो चुनाव में साफ दिखाई दिया। विधानसभा के नतीजों से पता चलता है कि भाजपा 2019 में मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से केवल 17 को ही पछाड़ सकती है, जबकि 2014 में पार्टी को 27 सीटें मिली थी।
फीडबैक में मिली ये वजह
पार्टी को हार के बाद जो फीडबैक मिला है उससे पता चला है कि कुछ कैबिनेट मंत्रियों को सबक सिखाने के लिए जनता ने हराने का फैसला किया। इसमें केंद्रीय मंत्री गहलोत के बेटे जीतेंद्र गहलोत भी शामिल हैं। वह रतलाम सीट से 5500 वोट से चुनाव हार गए। जबकि पिछली बार वह आठ हजार वोट से जीते थे। इस सीट पर 2500 वोट नोटा को डाले गए। यही नहीं ग्वालियर चंबल में भी पार्टी को भारी नुकसान हुआ। यहां केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के कहने पर टिकट वितरण किया गया था। बीजेपी को सिर्फ सात सीटें पर जीत मिली। जबकि उसे 20 सीटें 2013 में मिली थीं। आरक्षण के फैसले से पार्टी को उम्मीद है कि वह इस बार इन जगहों पर लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगी।