Children’s Day 2022 : आखिर क्यूं अब बच्चे, बच्चे से नहीं लगते

भोपाल, गौरव शर्मा। आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा जाता है? ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बच्चे निश्चल, निष्कपट और कोमल हृदय के होते हैं। वे ना ही झूठ बोलना जानते हैं ना हीछल फरेब करना जानते हैं। उन्हें जो प्यार दे वे उसी के हो जाते हैं। निश्चित तौर पर बदलती सदी और बदलते परिवेश के साथ हर चीज़ में बदलाव आता है, लेकिन वह बदलाव कितना सही है इसका आंकलन करने के लिए हमें वर्तमान को भूत से मिलाकर देखना होगा।

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जिन उंगलियों से एक अबोध बालक को चिड़िया उड़ खिलाना सिखाया जाना चाहिए वह उंगलियां यूट्यूब पर पेपा पिग चलाने लगी हैं। इस बात को मां-बाप भी बड़े ही गर्व से लोगों को बताते हैं कि हमारा बच्चा तो मोबाइल पर सब चला लेता है। इसका नतीजा जो आज देखा जा रहा है वह है छोटी-छोटी आंखों पर बड़े-बड़े नंबरों के चश्मे। नासमझ बालक का बाहरी दुनिया से यह संपर्क उसे वह सभी जानकारियां प्रदान करता है जो ना तो उसकी उम्र के लायक हैं और ना ही उसे समझ आती है। समझ और नासमझ के खेल में बच्चा ना तो बच्चा ही रह पाता है और बड़ा तो वह है ही नहीं। अब हमें समझना होगा कि आखिर क्या संभव कारण है जिस वजह से यह बदलाव हमें देखने को मिल रहे हैं।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।