सिंगरौली| राघवेन्द्र सिंह| लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की पहली सूची आने के बाद भाजपा में घमासान शुरू हो गया है| सीधी सिंगरौली संसदीय क्षेत्र से मौजूद सांसद रीति पाठक को एक बार फिर पार्टी ने टिकट दिया है| जिसको विरोध शुरू हो गया है| भाजपा जिलाध्यक्ष कान्तिशीर्ष देवसिंह उर्फ राजा साहब ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है | उनका कहना है कि लगातार पार्टी में उनकी उपेक्षा की जा रही है | वही उनके इस्तीफा देने के बाद जिला भाजपा के कई पदाधिकारियों ने भी इस्तीफ़ा दे दिया|
उर्जाधानी सिंगरौली जो कि सोने की चिड़िया के नाम से जानी जाती है सिंगरौली जिले की एक अलग ही पहचान है, यही वजह है कि सिंगरौली की पहचान दिल्ली तक गूंजती है| इसके बावजूद भी लगातार कई वर्षों से लोकसभा चुनाव में सिंगरौली के नेताओं को पार्टी द्वारा दरकिनार कर लगातार सीधी जिले के नेताओं को टिकट देने का काम किया जाता है | जिसको लेकर स्थानीय नेता विरोध में उतर आये हैं| बता दें कि प्रत्याशी चयन के लिए सिंगरौली जिले से किसी भाजपा नेता का नाम नहीं भेजा गया| जिसके चलते सवाल उठने लगे कि क्या सिंगरौली जिले में भाजपा का कोई कद्दावर और जिताऊ नेता नहीं है|
स्थानीय उम्मीदवार की उम्मीदों पर फिरा पानी
जिले के भाजपा नेताओं का विरोध है कि वर्षों से पार्टी द्वारा जिले के नेताओं की अनदेखी की जा रही है, आखिर कब तक सिंगरौली के नेता और कार्यकर्ता भाजपा के सीधी जिले के नेताओं को वोट देकर अपना नेता मानते रहेंगे| वहीं जनता का मानना है कि हर बार सीधी जिले से लोकसभा प्रत्याशी को टिकट दिया जाता है | लेकिन इस बार उन्हें उम्मीद थी, शनिवार को आई सूची के बाद एक बार फिर सिंगरौली की उम्मीद पर पानी फिर गया|
रीति के लिए चुनौतीपूर्ण होगा चुनाव
पार्टी के अंदरखाने से उठ रहे विरोध के स्वर के बाद भी आलाकमान रीति पाठक को दोबारा प्रत्याशी घोषित कर दिया। उल्लेखनीय है कि इस बार भाजपा विधायक सहित संगठन के कुछ पदाधिकारी रीति पाठक को प्रत्याशी बनाए जाने के समर्थन में नहीं थे। यही वजह थी कि सीधी से पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा, सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल, भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा, पूर्व जिलाध्यक्ष लालचंद गुप्ता, सिहावल के पूर्व विधायक विश्वामित्र पाठक व सिंगरौली जिले से पार्टी अध्यक्ष कान्तिदेव सिंह व पूर्व जिलाध्यक्ष गिरीश द्विवेदी ने दावेदारी जताई थी। भाजपा द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद रीति पाठक को सबसे बड़ी चुनौती अपनों से ही मिलने वाली है। पार्टी में ही कुछ लोग तो पहले ही खुले तौर पर उनकी खिलाफत कर चुके हैं।