MP उपचुनाव : आमने सामने होते-होते फिर रह गये…सिंधिया और केपी यादव

Pooja Khodani
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अशोकनगर, हितेन्द्र बुधोलिया। बीते साल लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने बाले सांसद केपी यादव की आज मुंगाबली में होने बाली पहली एवं बहुप्रतीक्षित मुकालात टल गई है।आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) के साथ दोनो नेताओ के एक मंच पर आने का कार्यक्रम तय था मगर लोकसभा के शुरू होने एवं सभापति के चुनाव के कारण दोनो के मुंगाबली आने के कार्यक्रम रद्द हो गये है। दोनो की आमने सामने होने जा रही इस पहली मुलाकात को लेकर लोगो मे बड़ी उत्सुकता थी।

लोकसभा चुनाव के दौरान देश के सबसे बड़े उलटफेर गुना संसदीय सीट के परिणाम को भी माना जा रहा था जिसमें चार बार के सांसद एवं कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को उन्हीं के पूर्व समर्थक में भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ कर चुनाव हरा दिया था। सिंधिया को इस हार की टीस काफी दिन तक रही थी । यही नहीं दोनों के बीच एक दूसरे को नीचा दिखाने एवं कमजोर सिद्ध करने के लिए लगातार मामले चर्चा में आते रहते हैं एक समय ऐसा भी था जब सांसद के पी यादव खुलेआम मंच से राज सभा सांसद ज्योतिरादित्यसिंधिया को भला बुरा कह रहे थे यहां तक की डॉ के पी यादव ने अपने ऊपर हुई एफ आई आर को लेकर सिंधिया की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिये थे।

करीब 6 माह पहले सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया इसके बाद भी दोनो के बीच किसी भी तरह की सार्वजनिक मुलाकात नही हुई ।इसी बीच भाजपा की बर्जुअल रैलियो के दौरान भी मुंगाबली की रैली में सांसद केपी यादव की अनुपस्थिति मुद्दा बन गई थी।बाद में अशोकनगर विधानसभा की ऑनलाइन रैली में सिंधिया एवं सासंद एक साथ जुड़े थे।उस दौरान दोनों ने पुरानी तल्खियों पर पर्दा डालने का प्रयास किया था।

आज होने वाली मुलाकात को लेकर जनता की नजर दोनों कपर थी।कि लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार दोनों एक साथ मंच पर होंगे तो किस तरह की उनकी मुलाकात होगी। क्या इनके मुलाकात में कोई गर्मजोशी होगी या पुरानी तल्ख़ियां एक बार फिर देखने को मिलेगी। बहरहाल लोगो को इन सब बातों के लिये इंतजार ही करना पड़ेगा। क्योकि दोनो सांसद दिल्ली में संसद में होने बाले आयोजन में भाग लेने के कारण मुंगावली नही आ पा रहे है।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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