MP Politics : बीजेपी का ‘अच्छा टाइम’ है… बीजेपी की ‘मेहनत’ है.. बीजेपी का ‘जलवा’ है.. बीजेपी का ‘भय’ है.. बीजेपी का ‘दबाव’ है या फिर बीजेपी की ‘रणनीति’ है ? आखिर ऐसा क्या है कि कांग्रेस के कई बड़े नेता बीजेपी में जा रहे हैं या जाने की अटकलें चल रही हैं। ये सब बीजेपी का कमाल है या फिर कांग्रेस की कमियां ?
कांग्रेस से जुड़ी अफवाहों का दौर क्यों नहीं हो रहा खत्म
लोग तो ये भी कह रह हैं कि बीजेपी खाली हो जाएगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ एक बड़ा झटका वो झेल चुकी है..लेकिन ऐन लोकसभा चुनाव से पहले क्या कमलनाथ और नकुलनाथ के बीजेपी में जाने का डैमेज कंट्रोल कर पाएगी ? हालांकि अभी सिर्फ इस तरह की अटकलें ही हैं लेकिन ऐसे कई राजनीतिक संकेत मिल रहे हैं जो इसकी पुष्टि करते प्रतीत होते हैं। अगर ये बात निराधार भी साबित हुई तो बार बार इस तरह उड़ने वाली अफवाहें भी कांग्रेस को कमज़ोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। सारी शक्ति अफवाहों का खंडन करने में ही ज़ाया कर दी तो बाकी काम कब करेगी कांग्रेस!
विधानसभा चुनावों के नतीजों से भी नहीं संभली!
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में जिस कदर करारी शिकस्त मिली है कांग्रेस को..उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए क्या मंथन किया गया और क्या रणनीति बनाई गई, जिसे अमल में लाकर वो अपनी संख्या में सुधार ला सके। कहा जाता है कि अच्छी बातें तो दुश्मन से भी सीख लेना चाहिए। तो आखिर क्यों बीजेपी के संगठन की मेहनत से कांग्रेस कोई सबक़ नहीं लेती ? इस बात में कोई दो-राय नहीं है कि जब चुनाव लड़ने की बात आती है तो भाजपा में क्या मुख्यमंत्री क्या कार्यकर्ता…सब जीजान से जुट जाते हैं। उनकी रणनीति और ज़मीनी स्तर पर की गई मेहनत को कोई धुर विरोधी भी नकार नहीं सकता। लेकिन कांग्रेस में ठीक चुनावों के दौरान ही दिग्गज नेता भी भरे मंच से इस तरह की बयानबाज़ी करते नज़र आते हैं..जिससे जनता का भरोसा डगमगाने लगता है। बीजेपी में सीएम..प्रदेशाध्यक्ष से लेकर मंत्रीगण तक कार्यकर्ता की भूमिका में आ जाते हैं। लेकिन कांग्रेस में तो कोई राजा है कोई महाराजा। अंदरुनी टकराव और मतभेद का आलम ये है कि वो इसे चाहकर भी छिपा नहीं पाते। उसपर परिवारवाद और कुछ लोगों के वर्चस्व का आरोप भी पार्टी पर लगातार लगता रहा है।
सवाल दर सवाल
अगर ये कहा जाए कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में भी उस दमदारी से पेश नहीं आ पाई है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसे में लगातार उनके बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की चर्चाएं जनता में छवि और खराब कर रही है। भले इसका नतीजा जो हो..लेकिन जनता का भरोसा खोना किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छा संकेत नहीं है। तो..क्या कांग्रेस अपनी पिछली भूलों से सबक़ लेगी और लोकसभा चुनाव में बेहतर स्थिति की ओर जाएगी। या फिर मध्य प्रदेश में वो अपनी इकलौती सीट भी गंवा बैठेगी ? जनता को हालिया स्थिति में कांग्रेस के रूप में बेहतर विकल्प क्यों नहीं दिख रहा है..इस तरह के सवालों से आखिर कब तक पीठ फेरती रहेगी कांग्रेस। कमलनाथ प्रकरण का नतीजा चाहे जो हो…लेकिन कांग्रेस के सामने अभी की और चुनौतियां बाकी हैं।