भोपाल। कांग्रेस एवं भाजपा के कई नेताओं का राजनीति भविष्य इस लोकसभा चुनाव में तय होने वाला है। क्योंकि दोनों दलों की ओर से करीब एक दर्जन सीटों पर ऐसे नेताओं को प्रत्याशी बनाया जा रहा है जो पिछले चुनाव हार चुके हैं और लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। कुछ नेता उम्रदराज भी हो रहे हैं, यदि इस बार चुनाव हारे तो अगले चुनाव में बढ़ती उम्र की वजह से टिकट मिलना भी मुश्किल होगाा।
कांग्रेस ऐसे नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में है, जो तीन महीने पहले विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। ये नेता लोकसभा चुनाव में फिर से दावेदारी कर रहे हैं। क्योंकि ये न तो सरकार में एडजस्ट हो सकते हैं और न ही संगठन में जिम्मेदारी उठा रहे हैं। कांग्रेस मुरैना से रामनिवास रावत को प्रत्याशी बना सकती है। रामनिवास यहां से दावेदारी कर रहे हैं। वे 2009 का लोकसभा चुनाव भाजपा के नरेन्द्र सिंह तोमर से हार चुके हैं। इस बार तोमर फिर मुरैना से चुनाव मैदान में है। तब रावत एक बार फिर उनके सामने उतारने जा रहे हैं। वहीं भाजपा के नरेन्द्र सिंह तोमर 60 की उम्र पार कर चुके हैं। ऐसे में उनकी पूरी कोशिश चुनाव जीतने पर रहेगी।
इसी तरह सतना सीट से राजेंद्र सिंह की दोवदारी है। वे विधानसभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन पिछला विधानसभा चुनाव अपनी पंरपरागत सीट से हार चुके हैं। वे भी 65 की उम्र पार कर चुके हैं। यदि चुनाव हारते हैं तो उन्हें आगे से चुनाव लडऩे की संभावना खत्म हो जाएगी। वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सीधी से लोकसभा चुनाव की दावेदारी कर रहे है। वे पिछला विधानसभा चुनाव अपनी पंरपरागत सीट चुहरट से हार गए। सिंह की हार को उनकी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि लोकसभा चुनाव में उन्हें सीधी से प्रत्याशी बनाया जा रहा है। इसी तरह खंडवा से अरुण यादव की दावेदारी चल रही है। वे पिछला विधानसभा चुनाव बुधनी से हार गए थे। 2014 का लोकसभा चुनाव भी हारे थे। इस बार लोकसभा चुनाव यादव का भविष्य तय करेगा। ग्वालियर से अशोक सिंह फिर से कांगे्रस प्रत्याशी हो सकते हैं। वे पिछले तीन चुनाव हार चुके हैं। यह चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य तय करने वाला है।
हारे नेताओं को प्रत्याशी बनाना कांग्रेस की मजबूरी
विधानसभा चुनाव हारने वाले इन नेताओं को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया कांग्रेस की मजबूरी है। क्योंकि कांग्रेस के पास इन सीटों पर इन नेताओं को प्रत्याशी बनाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है, जो भाजपा को टक्कर दे सकें। लोकसभा चुनाव 2009 में मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन, धार से गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी जीत गए थे, लेकिन अब पार्टी को दोनों सीट पर उनसे ज्यादा मजबूत प्रत्याशी नहीं दिखाई दे रहा है। अगर वे यह चुनाव हारते हैं तो पार्टी उनके विकल्प को तलाशना शुरू करेगी। सतना से दावेदारी कर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र सिंह को भी संगठन की तरफ से सीट पर जीत की शर्त लगाई गई है और अगर वे हारते हैं तो उन्हें भी संगठन या सरकार में वैकल्पिक स्थान मिलने की संभावना कम हो जाएगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को एक लोकसभा और करीब डेढ़ दशक बाद लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के कारण संगठन ने होशंगाबाद में उनके नाम की चर्चा के बाद भी ध्यान नहीं दिया।