भोपाल| मध्य प्रदेश सहित तीन राज्यों में भाजपा का सत्ता से बेदखल होने का सबसे बड़ा कारण सवर्णों की नाराजगी माना जा रहा था| जिसे भांपते हुए लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने सवर्ण आरक्षण बिल लाकर सवर्णों की नाराजगी को साधने की कोशिश की है| अब इस फैसले को चुनाव में भुनाने की तैयारी की जा रही है| प्रदेश में सवर्णों की नाराजगी दूर करने के लिए अब भाजपा नेता पूरे प्रदेश में अलग-अलग समाजों के सम्मेलन करने की तैयारी कर रहे हैं। इस मुद्दे को भुनाने के लिए अब नेता जनता के बीच पहुंचकर सवर्णों को आरक्षण के फैसले को विस्तार से बताएँगे|
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले ही आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग और एट्रोसिटी एक्ट को लेकर मचे बवाल को भाजपा सही तरह से भांप नहीं पाई, बल्कि इस खतरे को समझने के बाद भी जनता की नाराजगी को दूर नहीं कर पाई| जिसका खामियाजा चुनाव के दौरान देखने को मिला| जहां प्रत्याशियों को जनसम्पर्क के दौरान ही भारी विरोध का सामना करना पड़ा| कुछ सीटों पर तो चुनाव से पहले ही इस विरोध ने भाजपा की हार तय कर दी थी| इसके बाद उम्मीदवार चयन ने भी उतना ही खेल बिगाड़ा, जिसके बाद उपजे अंतरकलह ने भाजपा की सत्ता से विदाई करा दी| अब 15 साल बाद भाजपा विपक्ष में है, हालाँकि भाजपा बहुमत के आंकड़े से कुछ ही सीट दूर है और इसे भी भाजपा चुनाव में जनता के बीच बताएगी कि उन्हें जनता ने अपना आशीर्वाद दिया है सिर्फ कुछ सीटों का नुक्सान हुआ है| इस बात को साबित करने के लिए प्रदेश सगठन के पास एक और मौक़ा है| जिसके चलते रणनीतियों को अमल में लाना शुरू किया जा रहा है| मोदी सरकार का सवर्ण समाज को दस फीसदी आरक्षण देने का फैसला प्रदेश भाजपा के लिए संजीवनी का काम कर रहा है।
अब भाजपा नेता पूरे प्रदेश में अलग-अलग समाजों के सम्मेलन करने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा सवर्णों की पार्टी मानी जाती है इसलिए इस खाई को पाटना उसके लिए जरुरी हो जाता है। सवर्ण आरक्षण पार्टी से छिटक रहे अगड़ी जाति के लोगों को पास लाने का बड़ा टूल साबित हो सकता है। इसके लिए सवर्ण नेताओं को जिम्मेदारी सौंप जा रही है| जिनमे उमाशंकर गुप्ता – वैश्य समाज, नरोत्तम मिश्रा,गोपाल भार्गव, राजेंद्र शुक्ल – ब्राह्मण समाज, नरेंद्र सिंह तोमर और जयभान सिंह पवैया – क्षत्रिय समाज, पारस जैन और जयंत मलैया को जैन समाज की जिम्मेदारी मिलेगी।