कांग्रेस ने उप चुनाव में जीती थी ये सीट, क्या भाजपा बदला लेने में हो पाएगी कामयाब?

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भोपाल। अल्तमश जलाल।

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते कांग्रेस को कई सीटों पर नुकसान हुआ था। इसमें रतलाम-झाबुआ लोकसभा भी शामिल है। 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को जीत मिली थी। वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। लेकिन मोदी लहर में 2014 के चुनाव में भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने उन्हें शिकस्त दी थी। झाबुआ-रतलाम सीट साल 2015 जून में यहां के सांसद दिलीप सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी। दिलीप सिंह बीजेपी से सांसद थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बीजेपी ने दिलीप सिंह की बेटी निर्मला भूरिया को अपना उम्मीदवार बनाया था। निर्मला के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतीलाल भूरिया को मैदान उतारा था। भूरिया ने उप चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की थी। 

बीते कई दशक से बीजेपी लगातार प्रदेश में चुनाव जीत रही थी। लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक बीजेपी के सिर जीत का सेहरा हर जगह से था। यही नहीं पंचायत चुनाव से लेकर निगम और मंडल चुनाव तक बीजेपी का डंका बज रहा था। फिर 2014 में भाजपा की प्रचंड जीत ने देश में सभी राजनीतिक दलों को हिला कर रख दिया। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। बीजेपी ने एक नया इतिहास रचा था।  मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 27 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। उस समय प्रदेश में शिवराज फैक्टर और केंद्र में मोदी लहर की चर्चा चारों ओर थी। प्रदेश में कांग्रेस के अच्छे-अच्छे धुरंधरों को हार का सामने करना पड़ा था। झाबुआ-रतलाम सीट से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया भी चुनाव हार गए थे। बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया को इस सीट पर जीती मिली थी। बाद में उनका निधन होने से यह सीट खाली हुई और बीजेपी ने सहानुभूति को देखते हुए उनकी बेटी को उम्मीदवार बनाया। लेकिन इस सीट पर कांग्रेस ने फिर वापसी की और कांतिलाल भूरिया एक बार फिर यहां से संसद पहुंचे। उन्हें यह जीत बड़े अंतर से प्राप्त हुई थी। भूरिया करीब 90 हजार वोट से जीते थे। उप चुनाव के नतीजों ने शिवराज फैक्टर के विफल होने की घंटी बजा दी थी। कई राजनीति के जानकारों ने यहां तक दावा कर दिया था कि यह मोदी लहर के कम होने के आसार हैं। 

सहानुभूति फैक्टर भी बीजेपी को नहीं दिला सका जीत

यह जीत कांग्रेस और कांतिलाल भूरिया के लिए महत्वपूर्ण थी। क्योंकि बीजेपी के लिए इस सीट पर सहानुभूति फैक्टर भी काम नहीं किया था। जबकि, इस सीट पर जीत दिलाने के लिए बीजेप नेताओं ने दिन रात एक कर दिए थे और दिग्गज नेताओं ने जनसभाएं की थीं। लेकिन फिर भी वह इस सीट पर हार गए। इस उपचुनाव से एक बात तो साफ हो गई थी कि अब आदिवासी वोट दोबारा कांग्रेस की ओर जा रहा है। बाद में विधानसभा उप चुनाव में भी कांग्रेस को जीत मिली। एक तरह से देखा जाए तो बीजेपी उप चुनाव में किसी भी सीट पर नहीं जीत सकी। 

रतलाम में बीजेपी मजबूत

विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस को 8  में से 5  सीटों पर जीत मिली है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार वह फिर रतलाम-झाबुआ सीट जीतने में कामयाब होगी। झाबुआ विधानसभा सीट पर कांग्रेस इसलिए हारी क्योंकि कांग्रेस से बागी होकर जेवीयर मेड़ा ने यहां से चुनाव लड़ा और 36 हजार वोट हासिल किए। कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया की हार का एक बड़ा कारण भी यही था। वह बीजेपी के उम्मीदवार से महज दस हजार वोटों से हार गए थे। फिलहाल इस सीट पर कांग्रेस को जीत की पूरी उम्मीद है। लेकिन खतरे की बात ये है कि रतलाम में बीजेपी का वर्चस्व है। रतलाम सिटी और रतलाम ग्रामीण में बीजेपी मजबूत दिखाई दे रही है। यहां से बीजेपी के उम्मीदवार को 44 हजार वोटों से जीत मिली थी। 

कांग्रेस की पारंपरिक सीट है झाबुआ-रतलाम

अटकलें हैं कि इस बार भी कांग्रेस कांतिलाल भूरिया को ही मैदान में उतारेगी। देखा जाए तो यह सीट कांग्रेस की पारंपरिक सीट है। 1951 में इस सीट पर अमर सिंह डामर, 1957 में फिर उन्होंने जन संघ के नाथू सिंह को हराया था। 1962 में जमुना जेवी ने इस सीट पर कांग्रेस के टिकट से जीत हासिल की थी। उन्होंने जन संघ के उम्मीदार गट्टू सिंह को हराया था। 1967 में कांग्रेस के सुर सिंह झाबुआ से जीते थे। 1971 में समाजवादी पार्टी के नेता भागीरथ भनवार यहां से जीते थे उन्होंने कांग्रेस के सुर सिंह को बड़े अंतर से हराया था। भंवर सिंह दोबारा 1977 में लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़े और कांग्रेस के दिपील सिंह भूरिया को हराया। 1980 में एक बार फिर कांग्रेस का खाता खुला। कांग्रेस के टिकट पर लड़े दिलीप सिंह भूरिया को यहां से जीत मिली। उन्होंने जनता पार्टी की उम्मीदवार जमुना देवी को हराया था। 

क्या है इस सीट का इतिहास

इस तरह झाबुआ सीट पर 1980, 1984, 1989, 1991 और 1996 तक दिलीप सिंह भूरिया पांच पर कांग्रेस से जीते। उनके बाद कांतिलाल भूरिया ने चार बार कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाई। वह (1998, 1999, 2004 और 2009) तक सांसद रहे। लेकिन 2014 में दिलीप सिंह भूरिया ने दल बदलकर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के भूरिया को मोदी लहर में हराया । हालांकि, उनके निधन के बाद नवंबर 2015 में उप चुनाव हुए। एक बार फिर कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया मैदान में उतरे और उन्हें बड़ी जीत मिली। भाजपा के लिए, राज्य में BJP आदिवासी सीटों ’को बरकरार रखने की चुनौती है। जीएस डामोर ने झाबुआ सीट से विधानसभा चुनाव जीता है, लेकिन पार्टी जोखिम नहीं लेना चाहती है क्योंकि वह कांग्रेस को विधानसभा में कोई संख्यात्मक लाभ नहीं देना चाहती है। बीजेपी को रतलाम सीट पर जीत के लिए किसी कद्दावर आदिवासी नेताओं को उतारना होगा जो कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया का मुकाबला कर सके। फिलहाल कांग्रेस को इस सीट पर बड़ा खतरा नहीं है लेकिन अगर बीजेपी ने कोई कद्दावर आदिवासी नेता यहां से उतारा तो मुकाबला काफी रौचक हो सकता है। 


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