भोपाल। पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण पर फिलहाल हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। जिसको लेकर राज्य सरकार अगले हफ्ते कोर्ट में पक्ष रखेगी। जिसमें कोर्ट को बताया जाएगा कि 8 मार्च 2019 को जो अध्यादेश लाया गया, उसका सरोकार सिर्फ सर्विसेज से था न कि एजुकेशन से। लिहाजा, प्रीपीजी में 27 फीसदी आरक्षण का प्रश्न ही नहीं उठता, ओबीसी वालों को सिर्फ सर्विसेज के सिलसिले में यह लाभ प्रदान किया जाएगा। फिलहाल, एजुकेशन के रोस्टर को लेकर इसे लागू करने का कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है।
मध्यप्रदेश के उप महाधिक्ता अजय गुप्ता ने बताया कि जब प्रीपीजी मामले की सुनवाई चल रही थी, तभी उन्होंने वस्तुस्थिति साफ कर दी थी कि 8 मार्च 2019 को जो अध्यादेश लाया गया, उसका सरोकार सिर्फ सर्विसेज से था न कि एजुकेशन से। लिहाजा, प्रीपीजी में 27 फीसदी आरक्षण का प्रश्न ही नहीं उठता, ओबीसी वालों को सिर्फ सर्विसेज के सिलसिले में यह लाभ प्रदान किया जाएगा। फिलहाल, एजुकेशन के रोस्टर को लेकर इसे लागू करने का कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है। इस बात को रिकॉर्ड पर लेने के बाद हाईकोर्ट ने प्रश्न किया कि इस स्थिति में सरकार को एजुकेशन में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन पर रोक लगाए जाने के परिप्रेक्ष्य में कोई एतराज नहीं है? सरकार की ओर से हां में जवाब दिया गया, जिसके बाद प्रीपीजी काउंसलिंग में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन पर अंतरिम रोक लगा दी गई। वहीं राज्यसभा सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा के ट्वीट के साथ ही राज्य शासन की ओर से साफ कर दिया गया कि वह आगामी सप्ताह हाईकोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेगी।
सरकार बताएगी क्यों जरूरत पड़ी आरक्षण की
हाईकोर्ट ने अंतरिम स्थगनादेश के साथ ही सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब भी किया है। जवाब के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है। लिहाजा, अब सरकार अपना लिखित जवाब प्रस्तुत करेगी। उसमें यह साफ किया जाएगा कि आखिर सर्विसेज में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन का अध्यादेश क्यों लाना पड़ा, उसकी क्या तार्किक आवश्यकता थी।