नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। देशभर के सांसद (MP) और विधायकों (MLA) को बड़ा झटका लगा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने सांसद और विधायक के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले में एक बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ संबंधित उच्च न्यायालयों से पूर्व मंजूरी के बिना आपराधिक मामले वापस नहीं ले सकेंगे।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (NV Ramna) और जस्टिस विनीत सरन और सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली एक पीठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की 2016 की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने के अलावा दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सांसद और विधायकों के खिलाफ मुकदमे की स्थिति पर एमिकस क्यूरी विजय हंसरिया द्वारा रखी गई। एक रिपोर्ट के आधार पर यह बयान दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में दो साल से भी कम समय में 17 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
विजय हंसरिया ने रिपोर्ट में कहा की राज्य सरकार द्वारा सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने का मुद्दा है। कर्नाटक सरकार ने ऐसे 61 नेताओं के खिलाफ मामले वापस लेने के आदेश दिए हैं। उत्तराखंड में भी ऐसी कार्रवाई की गई थी। जबकी ऐसे मामलों की वापसी हाईकोर्ट की अनुमति के बिना नहीं दी जानी चाहिए।
मामलों की सुनवाई करने वाले जजों का तबादला नहीं होगा
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी आदेश दिया कि विशेष अदालतों के न्यायाधीशों, सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों को अगले आदेश तक स्थानांतरित नहीं किया जाए। इसने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को विशेष अदालतों द्वारा सांसदों के खिलाफ तय किए गए मामलों के बारे में एक विशेष प्रारूप में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया है।