भितरघात के भय से मुरैना गए तोमर, करोड़ों के विकास कार्यों पर फिरा पानी

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ग्वालियर। केन्द्रीय मंत्री और ग्वालियर सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर का ग्वालियर सीट से चुनाव ना लड़कर मुरैना का चयन करना कोई अप्रत्याशित नहीं हैं। दरअसल विधानसभा चुनावों में पार्टी को जिले में मिली करारी शिकस्त और हारे हुए प्रत्याशियों द्वारा तोमर को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद से तय हो गया था कि तोमर ग्वालियर से नहीं लड़ेंगे। क्योंकि जिस तरह उन पर प्रत्याशियों को हारने के आरोप लगे उससे उन्हें भितरघात का भय सताने लगा था। लेकिन इन सबके बीच श्री तोमर द्वारा ग्वालियर में कराये गए करोड़ों के विकास कार्यों पर जरुर पानी फिर गया। 

2014 में 29 हजार 600 वोट से जीत दर्ज करने वाले ग्वालियर के सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर ने एक बार फिर सीट बदल ली है। वे 2009 में जिस मुरैना सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे,वापस वहीँ चले गए हैं। इसके पीछे कई वजह बताई जा रहीं हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में जो सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है वो है भितरघात का भय। दरअसल अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जिले की 6 सीटों में से भाजपा के पास केवल ग्वालियर ग्रामीण की सीट है जिसपर नरेन्द्र सिंह तोमर के खास भारत सिंह कुशवाह फिर से जीत दर्ज करने में सफल हुए लेकिन बहुत कम अंतर से। जबकि ग्वालियर दक्षिण से लगातार तीन बार के विधायक और मंत्री नारायण सिंह कुशवाह को पहली बार चुनाव लड़े कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने मात्र121 वोटों से हरा दिया। यहाँ भाजपा की बागी पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता ने 32 हजार वोट लेकर ल्हेल बिगाड़ा। उधर कद्दावर मंत्री जयभान सिंह पवैया को सिंधिया के विश्वासपात्र पूर्व विधायक प्रद्युम्न सिंह तोमर ने भारी अंतर से हरा दिया । तोमर को पवैया ने 2013 में 19 हजार वोटों से हराया था लेकिन तोमर इस बार दुगने वोटों से जीते। ग्वालियर पूर्व से मंत्री माया सिंह का टिकट कटवाकर टिकट हासिल करने वाले सतीश सिकरवार भी चुनाव हार गए। उन्हें कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल ने आसानी से हरा दिया। शहर इन तीनों सीटों के लिए पार्टी स्तर पर और नरेंद्र सिंह तोमर ने बहुत मेहनत की लेकिन हार मिली। ��ार के बाद पवैया,सिकरवार और नारायण सिंह तोमर ने इसके लिए श्री तोमर को जिम्मेदार ठहराया। तीनों के समर्थक कई बार ये कहते सुने गए कि अब इसका बदला लोकसभा में लिया जायेगा। उधर भितरवार में मशक्कत के बाद टिकट लेकर आये सांसद अनूप मिश्रा को मुंह की खानी पड़ी। विधायक लाखन सिंह ने उन्हें आसानी से हरा दिया। डबरा में भी इमरती देवी के सामने भाजपा प्रत्याशी नहीं टिक सका। हालाँकि इन दोनों ग्रामीण सीटों के जातिगत समीकरण अलग थे लेकिन हार का ठीकरा नरेन्द्र सिंह तोमर के सिर फोड़ा गया। चुनाव परिणामों के बाद ये लगने लगा था कि अब नरेन्द्र सिंह का ग्वालियर से लड़ना उनके लिए खतरा होगा तो उन्होंने वापस मुरैना में सक्रियता बढ़ा ली। और मुरैना के लिए केन्द्रीय नेतृत्व को तैयार कर लिया। हालाँकि इस बार मुरैना सीट भी तोमर के लिए आसान नहीं होगी। क्योंकि अनूप मिश्रा के काम नहीं करने के कारण पार्टी के खिलाफ लोगों में गुस्सा है और ग्वालियर से तोमर विरोधी गुट भी मुरैना में अपनी चाल चलने से पीछे नहीं हटेंगे।इधर ग्वालियर सीट की बात करें तो विधानसभा चुनावों में भाजपा को करीब एक लाख पैंतीस हजार वोटों का नुकसान हुआ है। अब इतनी बड़ी खाई कैसे पूरी होगी। और ग्वालियर लोकसभा सीट पर शिवपुरी जिले की जो दो विधानसभा सीट जुड़ती है वहां कांग्रेस का कब्ज़ा है। इस हिसाब से नुकसान का अंतर और बड़ा हो जाता है अब ऐसे में इसे पाटना पार्टी के लिए बहुत मुश्किल होगा।

करोड़ों के विकास कार्यों पर पानी फिरा 

इस सबके बीच 2014 के बाद से 2019 के बीच ग्वालियर में नरेन्द्र सिंह तोमर ने जो काम कराये वो गौण हो गए। जीत कर आने वाला उम्मीदवार विकास इसलिए कराता है कि अगली बार चुनाव में उसे इसका लाभ मिले  लेकिन ग्वालियर में इस पर पानी फिर गया। चाहे सांसद निधि की बात हो या केंद्र सरकार से पैसा लाने की बात। नरेन्द्र सिंह तोमर ने ग्वालियर के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। विपक्षी चाहे कुछ भी कहें लेकिन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल,पांच ROB,सड़कों के जाल,कई ट्रेनों के स्टॉपेज सहित करोड़ों के ना जाने कितने काम श्री तोमर ने इन पांच वर्षों में कराये लेकिन अब इसका लाभ उनके खाते में नहीं जा सकेगा। पार्टी या पार्टी प्रत्याशी इसका लाभ उठा पाता है कि नहीं ये तो समय ही बताएगा। बहरहाल भितरघात के भय ने नरेन्द्र सिंह तोमर को ग्वालियर सीट छोड़ने पर मजबूर कर दिया। अब वो इसे स्वीकार करें या ना करें, राजनीतिक माहौल की सच्चाई तो यही है।


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