भोपाल। मध्य प्रदेश में बीजेपी की सबसे मजबूत गढ़ वाली सीटों में से एक भोपाल लोकसभा सीट पर लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। पूर्व सीएम दग्विजय सिंह का नाम भोपाल से फाइनल है, इसका ऐलान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किया है| भोपाल लोकसभा सीट 1989 के बाद से ही बीजेपी के कब्जे में रही है और 2014 के चुनाव में बीजेपी के आलोक संजर ने लगभग तीन लाख पचास हज़ार से अधिक वोट से जीत दर्ज की थी। इस बार भी संजर दावेदारी ठोक रहे हैं| वहीं दिग्विजय के भोपाल से नाम फाइनल होने के बाद बीजेपी में फिर से मंथन शुरू हो गया है| अब अपने गढ़ को बचाने बीजेपी भी दमदार प्रत्याशी ही उतारेगी। बताया जा रहा है कि पार्टी वर्तमान सांसद आलोक संजर का टिकट काट सकती है। इसके अलावा भी भोपाल से कई बड़े नेताओं समेत साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम भी सामने आया है।
दरअसल, बीजेपी भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के नाम की घोषणा का इंतजार कर रही थी। पार्टी ने उसके मुताबिक ही अपनी रणनीति तय की है। अंदरखाने की खबर है कि दिग्विजय सिंह के उम्मीदवार घोषित होने की सूरत में बीजेपी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर भी विचार कर रही है| हालांकि इससे पहले उन्होंने इसका खंडन करते हुए भोपाल से चुनाव लड़ने की इच्छा से इंकार किया था| लेकिन अब स्तिथि बदल गई है| तोमर का टिकट मुरैना से तय माना जा रहा है। लेकिन कांग्रेस के ऐलान के बाद अब बदलाव संभव है। उनके अलावा स्थानीय नेताओं की मांग को देखते हुए वर्तमान महापौर आलोक शर्मा का नाम भी सबसे आगे है। उनकी दावेदारी भी प्रबल मानी जा रही है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नाम की भी अटकलें हैं| अगर ऐसा हुआ तो 16 साल बाद दोनों नेता एक दूसरे के सामने होंगे और मुकाबला भी बेहद रोचक होगा|
इसके अलावा संघ की ओर से वीडी शर्मा का नाम सामने आया है। हालांकि स्थानीय नेताओं ने इसका विरोध किया है| खबर ये भी है कि सिंह के उम्मीदवार होने पर बीजेपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भी दावेदार बना सकती है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने सिंह की दावेदारी पर भी बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ये धर्म और अधर्म की लड़ाई है। कांग्रेस की तरफ से भोपाल सीट पर दिग्विजय सिंह को उतारने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि राम और रावण की तरह होगा चुनावी मुकाबला।
गौरतलब है कि भोपाल सीट को लेकर लंबे समय से कांग्रेस में खींचतान चल रही थी। कांग्रेस की निगाहें भाजपा का गढ़ बन चुकी सीटों पर टिकी है। 2003 में सत्ता से बाहर होने के बाद दिग्विजय सिंह 15 साल बाद चुनावी मैदान में ताल ठोकते नजर आएंगे। इससे पहले उनके राघौगढ़ और इंदौर से भी चुनाव लड़ने की अटकलों थी। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि उन्हें किसी कठिन सीट से चुनाव लड़ना चाहिए जहां से कांग्रेस को लंबे समय से जीत नहीं मिली है। 2014 में वोटों का अंतर तीन लाख से अधिक था। अब देखना होगा क्या इस बार कांग्रेस इतिहास रचने में कामयाब होगी या फिर भाजपा अपने गढ़ को बचा पाएगी|