Same surname: जापान में एक सरनेम रखने को लेकर एक कानून पर बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। दरअसल यह कानून जापान में पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए अपनाया जा रहा है, जिससे जापान में शादी के बाद कई महिलाएं जो अपने सरनेम का इस्तेमाल करती हैं, अब उन्हें कई मूलभूत सेवाओं और सुविधाओं का लाभ उठाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
तलाक के समय भी हो रहीं रुकावटें:
दरअसल जापान में यह कानून महिलाओं को तलाक होने पर भी बच्चों की कस्टडी मिलने में रुकावटें खड़ी कर सकता है। हालांकि, जापान में सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ कई बार याचिका दायर की गई है। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार खारिज भी किया है, लेकिन कई बड़ी कंपनियों के मैनेजर्स का कहना है कि इसमें बदलाव की जरूरत है।
इस मुद्दे पर कई बड़ी कंपनियों के ज्यादातर पुरुष मैनेजर भी कानून में बदलाव की जरूरत का समर्थन कर रहे हैं। दरअसल वे ऐसी प्रणाली की मांग कर रहे हैं, जिससे सभी विवाहित जोड़ों के पास अपना अलग-अलग नाम रखने का विकल्प भी उपलब्ध हो सके।
कीडैनरेन की सिफारिश:
जापान के शक्तिशाली बिजनेस लॉबी समूह कीडैनरेन ने भी इस मुद्दे पर सरकार को एक सिफारिश पत्र सौंपने की योजना बनाई है। कीडैनरेन ने इस मुद्दे में समर्थन व्यक्त किया है और उपनाम प्रणाली में बदलाव की मांग की है। आपको बता दें की जापान में शादी के बाद एक सरनेम अपनानें की प्रणाली 1898 से चली आ रही है, जिससे समाज में रूढ़िवादी रुख बना हुआ है। इसे बदलकर अब समाज में सामंजस्य और समानता की भावना को मजबूती से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता हो रही है।
क्या इस नई प्रणाली से आएगा समाज में कोई बड़ा बदलाव?
इस कानून में संशोधन की मांग करने वाले जोड़े सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रख रहे हैं, वहीं कंपनियों के मैनेजर्स और बिजनेस लॉबी समूह की ओर से आने वाली समर्थन से यह उम्मीद है कि नई प्रणाली से समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है। जापान में शादी के बाद एक ही सरनेम रखने के कानून पर उठ रहे सवालों और मुद्दों के बीच, समाज में समानता और सामंजस्य की भावना को मजबूती से बढ़ावा देने की मांग हो रही है। इसके बदलते परिप्रेक्ष्य में, सुप्रीम कोर्ट की फैसले की राह पर बदलाव की उम्मीदें बढ़ रही हैं, जिससे समाज में नए सोच और समृद्धि का संकेत हो सकता है।