History Of Lipstick Hindi: हर महिला की खूबसूरती बढ़ाने में एक प्रोडक्ट है जो बहुत जरूरी है और हर किसी के पास मिलता है, वो है लिपस्टिक। बाजार में कई तरह की कंपनी और वैरायटी की लिपस्टिक आसानी से मिल जाती है। आजकल के नए-नए प्रोडक्ट का फॉर्मूलेशन भले ही अलग हो लेकिन मेकअप का यह प्रोडक्ट नया नहीं है, बल्कि इसका इतिहास सदियों पुराना है। हजारों साल पहले ईजाद किया गया ये मेकअप प्रोडक्ट आज इतना आगे पहुंच चुका है कि अब हम इसे अपने स्किन टोन और रंगों के हिसाब से खरीद सकते हैं।
लिपस्टिक को तैयार करने में कई तरह के फल, तेल और फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे इनग्रेडिएंट उपयोग करने की कोशिश की जाती है जिससे होठों नमी बनी रहे और वह हेल्दी रहे। लाइट शेड हो बोल्ड, शिमरी, मेट, न्यूड या फिर न्यूट्रल रंग हर तरह की वैरायटी मार्केट में आसानी से उपलब्ध है। आज हम आपको लिपस्टिक के इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं और बताते हैं कि आखिरकार यह प्रोडक्ट किस तरह से मानव जीवन में आया और इसका जरूरी हिस्सा बन गया।
रोचक History Of Lipstick
महिलाओं के श्रृंगार का लिपस्टिक हमेशा से ही जरूरी हिस्सा रही है। हजारों साल पुरानी सभ्यता को भी अगर खंगाला जाए तो महिलाओं के होठों पर रंगों का इस्तेमाल किए जाने के सबूत मिल जाएंगे। इतिहास में मौजूद कहीं तथ्य यह साबित करते हैं कि लिपस्टिक लगाने की प्रथा लगभग 5000 साल पुरानी है। उस समय फूलों और कीमती पत्थरों को पीसकर पेस्ट तैयार किया जाता था, जिसका इस्तेमाल होठों पर लगाने के लिए होता था।
5 हजार साल पुरानी है सभ्यता
आज ही नहीं बल्कि हजारों साल पहले भी मेकअप व्यक्ति के स्टेटस का सिंबल माना जाता था। महिलाएं बल्कि पुरुष भी इसे अपने श्रृंगार में इस्तेमाल किया करते थे। ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि मेकअप ना सिर्फ लोगों को सुंदर बनाता था बल्कि इसके कई औषधीय महत्व भी थे।
लिपस्टिक के शुरुआती उपयोगकर्ता सुमेरियन सभ्यता के लोग थे जो मिट्टी, मेहंदी, फलों और कीड़ों जैसी चीजों के जरिए रंगों का निर्माण करते थे। नेचुरल चीजों के जरिए वह होठों पर लगाने के लिए लिपस्टिक बनाते थे। मेसोपोटामिया की महिलाएं इस मामले में एक्सपर्ट थी और होठों पर चमक लाने के लिए वह जमीन से निकले हुए गहनों का इस्तेमाल किया करती थीं।
मिस्त्र तो वैसे भी अपनी खूबसूरत रानी महारानियों के लिए जाना जाता है। इनके द्वारा इजाद किए गए रंगों के चलते इन्हें लिपस्टिक प्रेमी कहा जा सकता है। लाल से आगे बढ़कर इन्होंने बैंगनी, सुनहरे और काले रंग के शेड बनाएं। शायद उस समय लोगों को इसी तरह के रंग पसंद आया करते थे।
इस तरह के लिपस्टिक शेड बनाने के लिए यह लोग कीड़ों, मगरमच्छ के मल और भेड़ के पसीने का उपयोग किया करते थे। हालांकि, मिस्र के लोगों के द्वारा ब्रोमीन मैननाइट और लेड जैसे हानिकारक पदार्थों का उपयोग किए जाने की जानकारी भी मिलती है। जिनसे व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
ग्रीक साम्राज्य में लिपस्टिक का इतिहास एक अलग ही चीज से जुड़ा हुआ है। यहां लिपस्टिक को प्रॉस्टिट्यूशन से जोड़ा गया था और कानूनी तौर पर वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को अपने होठों पर गहरे रंगों को इस्तेमाल करने के लिए कहा जाता था।
जापान महिलाएं हैवी मेकअप लगाना पसंद करती थी। उनके मेकअप में लिपस्टिक गहरे रंग की होती थी जिसे तार और बीवेक्स के जरिए तैयार किया जाता था।
9 ईस्वी के दौरान अरब के अबुलकासिस नामक वैज्ञानिक ने सॉलिड लिपस्टिक का आविष्कार किया। उन्होंने एक सांचा तैयार किया और रंगों के साथ प्रयोग करते हुए ठोस लिपस्टिक तैयार की।
भारत की बात की जाए तो होठों को रंगने के लिए पान के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता था। वहीं सूखे और फटे होठों को ठीक करने के लिए घी और रतनजोत की सूखी पत्तियों के आयुर्वेदिक नुस्खे को अपनाया जाता था। देश के कई हिस्सों में आज भी होठों की खूबसूरती के लिए ये प्रयोग किया जाता है।
मध्ययुग में बदला इतिहास
ईसाई धर्म के फैल जाने के बाद चर्च में मेकअप या लिपस्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी। ऊपर लगाए गए लाल रंग को शैतान से जोड़कर देखा जाता था और जो महिलाएं इसका उपयोग करती थी उन्हें डायन या फिर जादूगर ने कहा जाता था। प्रॉस्टिट्यूट के अलावा महिलाएं लिपस्टिक का उपयोग नहीं करती थी। क्योंकि उस समय भी लिप बाम जैसी चीज मौजूद थी जिसमें महिलाएं हल्का रंग मिलाकर होठों पर इस्तेमाल करती थीं।
16 वीं सदी में हुई वापसी
इंग्लैंड में जब महारानी एलिजाबेथ का राज था उस समय एक बार फिर लिपस्टिक चलन में लौटी। महारानी खुद भी इसका इस्तेमाल किया करती थीं, उनकी सफेद स्किन पर लाल होंठ पॉपुलर हो गए थे। लगी इस दौर में भी आम लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी। उच्च घराने के लोग या एक्टर्स ही इसका इस्तेमाल किया करते थे।
1884 में आई पहली लिपस्टिक
फ्रेंच परफ्यूम कंपनी Guerian ने पहली बार लिपस्टिक को मार्केट में उतारा। बीवेक्स, केस्टर ऑयल और हिरण के शरीर से निकलने वाले वसा को मिलाकर इससे तैयार किया जाता था और रेशम के कागज में लपेट कर मार्केट में बेचा जाता था।
सिलेंड्रिकल पैकिंग
1915 में जिस तरह से आज लिपस्टिक का मूल स्वरूप है उसे वह हासिल हुआ था। इसका आविष्कार मॉरिस लेवी ने किया था।
ऐसे हुई परमानेंट एंट्री
1920 आने तक लिपस्टिक महिलाओं की जिंदगी में परमानेंट जगह बना चुकी थी। लाल, बैंगनी, प्लम, चैरी, ब्राउन जैसे शेड इस समय मिलने लगे थे। इस समय एक फ्रेंच केमिस्ट पॉल बॉडरक्रॉक्स ने ऐसी लिपस्टिक का इजाद किया जो किस प्रूफ थी। हालांकि, ये मार्केट में ज्यादा समय तक नहीं चल पाई क्योंकि महिलाओं को इसे अपने होठों से हटा पाना मुश्किल हो रहा था।
बनी टीनएजर्स की पसंद
1930 का समय ग्रेट डिप्रेशन का था लेकिन फिर भी लिपस्टिक के उत्पादन पर इसका कोई असर नहीं हुआ। दौरान एक सर्वे किया गया जिसमें यह जानकारी सामने आई थी 50 फ़ीसदी टीनएजर्स लड़कियां तो लिपस्टिक का उपयोग करने के लिए अपने माता-पिता से भी लड़ लेती हैं। उस दौर में प्लम और बरगेंडी जैसे रंग बहुत फेमस थे।
अडॉल्फ हिटलर को थी नफरत
1940 का दौर द्वितीय विश्व युद्ध का था। समय जिन महिलाओं की हमारी की फौज में भर्ती की गई थी उन्हें लाल रंग की लिपस्टिक लगाने को कहा जाता था क्योंकि हिटलर को इस रंग से नफरत थी। वहीं भारत की फेमस एक्ट्रेस मधुबाला जो मानदंडों को तोड़ने वाली मानी जाती थी। उन्होंने इस समय बोल्ड मेकअप भी किया और पेंट जैसी चीज को भी पहना जो भारत में अन्य महिलाएं नहीं कर सकती थी।
मेकअप ट्रेंड बनी लिपस्टिक
1950 तक पहुंचने तक हॉलीवुड के कई ग्लैम आइकन दुनिया भर में मेकअप का ट्रेंड तैयार कर रहे थे। हर महिला अपनी पसंदीदा एक्टर की तरह देखना चाहती थी। पहले से ज्यादा पहचान हासिल कर चुकी थी। इसके बाद 1952 में क्वीन एलिजाबेथ ने अपने राजतिलक के दौरान खुद का लिपस्टिक शेड तैयार किया जिससे उनके फेवरेट ब्रांड क्लारिन्स ने बनाया था। द बालमोरल नाम की इस लिपस्टिक का रंग क्वीन के रोब से मैचिंग था।
अहम हिस्सा बनी लिपस्टिक
1960 और 1970 के दशक में लिपस्टिक को आर्ट कल्चर से भी प्रेरणा मिली और यह फैशन इंडस्ट्री का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई। इस समय मेबलीन के ऑरेंज डेंजर रंग को बहुत पॉपुलैरिटी मिली थी।
ग्लॉसी हुए रंग
80 के दशक में लिपस्टिक में ग्लॉसी और शिमरी टच भी शामिल हो गया। स्टेटमेंट लुक तैयार करने के लिए कपड़ों और होठों के रंग को मैच करने का चलन चलने लगा। हॉट पिंक रंग इस समय काफी पॉपुलर हुआ।
सजग हुए लोग
1990 के दौर में सिंपल मेकअप का फैशन चलने लगा था। इस समय तक लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आई और उन्होंने केमिकल फ्री और नेचुरल लिपस्टिक की ओर रुख करना शुरू कर दिया। इसके बाद अर्बन डीके और मैक जैसे ब्रांड्स की मार्केट में एंट्री हुई।
2000 के बाद
साल 2000 के बाद से लिपस्टिक के बिना मेकअप को अधूरा माने जाने लगा। इस दौर की मशहूर अदाकाराओं ने शाइन और ग्लाॅस को लोगों के बीच पॉपुलर बना दिया। इसके बाद यह लिपस्टिक मेकअप के साथ-साथ रोजमर्रा की जिंदगी में भी एक जरूरी एक्सेसरीज बन चुकी है। हर महिला के मेकअप किट में और पर्स में लिपस्टिक शेड मिलना आम से बात हो गई है। उम्मीद है लिपस्टिक की इस हिस्ट्री को जानने के बाद जब भी आप उसे देखेंगे तो यह रोचक तथ्य आपको याद आएंगे।