Decline of crows in India : कागा चुन चुन खाइयो, चुन चुन खाइयो नैन…लेकिन इस कातर पुकार के नायक पक्षी तो जैसे अब दिखना ही बंद हो गए हैं। क्या आपने गौर किया है कि पिछले कुछ सालों में हमें अपने आसपास कौवे नज़र नहीं आ रहे हैं। हमारे देश में इनकी संख्या तेजी से कम हुई हैं। पहले अक्सर हम इन्हें अपनी मुंडेर पर, पेड़ों पर देखा करते थे। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि उनका दिखना धीरे धीरे बंद हो गया। और क्या कौवों का यूं नदारद होना हमारे ईकोसिस्टम पर क्या असर डालेगा।
कौवे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है, जिससे कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। अगर ये नहीं रहे तो इसका प्रभाव खाद्य श्रृंखला, पर्यावरणीय स्वच्छता, जैव विविधता और मानव जीवन पर स्पष्ट रूप से देखा जाएगा।
कौवे : बुद्धिमान और तेज स्मरणशक्ति वाले पक्षी
काले रंग को लेकर हमारे पूर्वाग्रहों का असर है या फिर कुछ और..जानें क्यों हमारे यहां कौवे उपेक्षित से रहे। उनकी उपमाएं कुछ ऐसी दी गई मानों वो अपशगुन हों या फिर किसी बुरी खबर का पूर्वाभास। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कौवे सबसे बुद्धिमान पक्षियों में से एक हैं। वे समस्याओं को हल करने में कुशल होते हैं। कौवे मनुष्यों को पहचानने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। वे चेहरे पहचान सकते हैं और उन्हें लंबे समय तक याद रखते हैं। यदि कोई व्यक्ति उन्हें नुकसान पहुंचाए, तो वे उसे वर्षों तक याद रखते हैं। और ख़ास बात ये कि कौवों में Monocular vision होता है। ये वह क्षमता है, जिसमें हर आंख स्वतंत्र रूप से अलग दृश्य देख सकती है।
आखिर क्यों घटती जा रही है कौवों की संख्या
तो दोनों आंखों से दो दृश्य देखने में सक्षम कौवे आखिर हमारे दृश्य से गायब कैसे हो गए। अब तो पितरों की स्मृति में भोजन खिलाने के लिए भी कौवे नहीं मिलते है। स्थिति ये हो गई है कि कौवों को देखे बिना साल गुज़र जाते है। अब न तो ये हमारे घरों की मुंडेर पर दिखते हैं, न आसमान में उड़ते हुए। लेकिन ऐसा हुआ क्यों ?
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है पर्यावरणीय परिवर्तन और शहरीकरण। इस वजह से कौवों के प्राकृतिक आवासों में कमी आई है, जिससे उनकी संख्या में कमी हो रही है। शहरीकरण के कारण ऊंचे पेड़ों की कटाई से कौवों के प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं। कौवे मुख्य रूप से मृत जानवरों और कचरे पर निर्भर होते हैं। शहरी क्षेत्रों में कचरे का प्रबंधन बेहतर होने से उनके लिए खाद्य स्रोत कम हो गए हैं, जिससे उनकी उपस्थिति में कमी आई है। मोबाइल टावर के रेडिएशन प्रदूषण की वजह से भी कौवों की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। कीटनाशकों और रसायनों के इस्तेमाल भी इनकी संख्या पर असर डाल रहा है। वहीं, शहरों में दिन भर का शोरगुल और प्रदूषण भी कौवों के कम दिखने की बड़ी वजह है।
कौवे विलुप्त हुए तो पूरे पर्यावरण पर पड़ेगा असर
कौवों के विलुप्त होने से पर्यावरण, पारिस्थितिकी और मानव जीवन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। कौवे “प्रकृति के सफाईकर्मी” और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कौवे गंदगी साफ़ करने वाले पक्षी हैं। इनकी कमी से वातावरण दूषित हो सकता है। उनके न होने से जैविक कचरा सड़ने लगेगा, जिससे संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। कौवे कीड़ों और छोटे जीवों का शिकार करते हैं। उनकी कमी से कीटों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे फसलों को नुकसान होगा और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा। कौवे खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं। वे छोटे जीवों को खाते हैं और बड़े शिकारी पक्षियों (जैसे बाज और उल्लू) के लिए भोजन बनते हैं। उनके न होने से इस खाद्य श्रृंखला में असंतुलन हो सकता है, जिससे अन्य प्रजातियां भी प्रभावित होंगी। कौवे कई प्रजातियों के लिए “कनेक्टर” के रूप में कार्य करते हैं। वे विभिन्न प्रकार के पौधों, कीड़ों और पक्षियों को जोड़ते हैं। उनके विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन होगा, जिससे कई अन्य प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
कौवों का विलुप्त होना समग्र जैव विविधता को कम करेगा, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता पर असर पड़ेगा। हर प्रजाति किसी न किसी तरह से पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करती है। कौवों की अनुपस्थिति इस जटिल प्रणाली को कमजोर कर सकती है। इसीलिए हमें समय रहते संभलना होगा। कौवे ही नहीं, ऐसे तमाम पक्षी और जीव जंतु इस प्रकृति का अभिन्न हिस्सा है और सभी को इस धरती और पर्यावरण में रहने का समान अधिकार है। ये हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इन्हें बचाए रखने के लिए हम अनुकूल वातावरण तैयार करें, क्योंकि कौवे या किसी अन्य जीव का विलुप्त होना सिर्फ उनकी प्रजाति का नष्ट होना नहीं है बल्कि इसका असर पूरे प्राकृतिक संतुलन पर पड़ेगा।