निर्मल वर्मा : भाषा के जादूगर, हिंदी साहित्य के समादृत साहित्यकार और चिंतक को जन्मदिन मुबारक

Nirmal Verma Birthday : निर्मल वर्मा को याद करना भाषा के जादू को याद करना है। हिंदी के आधुनिक और मूर्धन्य कथाकार की लेखनी ने कितने नए मुहावरे गढ़ें हैं। उनकी भाषा के सौंदर्य से मन बिंध जाता है। नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर निर्मल वर्मा का आज जन्मदिन है और इस मौके पर साहित्य समाज एक बार फिर उन्हें बेहद प्यार से याद कर रहा है।

कवि-कलाकार सौरभ अनंत की कलम से

‘एक ग़लत मोड़ लेते ही हमें दुनिया के ऐसे हिस्से दिखाई देते हैं, जो सही और सीधे रास्ते पर कभी दिखाई नहीं देते..! ~ निर्मल वर्मा’

..शुक्रिया निर्मल वर्मा मुझे ये बताने के लिये कि ये दुनिया असल में उन हिस्सों से भी मिलकर बनी है जिन तक पहुँचने के लिये कोई रास्ता कोई मोड़ नहीं है। उनके होने का सिर्फ़ विश्वास है..।

तुम पूछते थे न ‘क्या तुम विश्वास करते हो’ ..हाँ, मैं विश्वास करता हूँ। जन्मदिन मुबारक़ तुम्हें निर्मल वर्मा..!

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पेन उठाया और सोचा तुम्हें जन्मदिन की बधाई लिख दूँ। पर हाथ कोई शब्द नहीं उकेर पाये। जो भी शब्द लिखा वो किसी कपड़े में से उधड़ते धागे सा धीरे-धीरे खिंच कर आड़ी तिरछी लकीर बन गया।

मैंने तुम्हें जो प्रेम लिखा वो पिघल कर मछली बन गया है। और न जाने कहाँ से एक और मछली साथ ले आया है। वो छोटी मछली मेरा नाम है। अब वो मछलियाँ मिलकर बार बार तुम्हारा नाम पुकार रही हैं। जबकि नाम तुम्हारा ऊपर लिखा था काग़ज़ पर। पर वो ऐसा फैला कि कोई लकीरों से बना हुआ चाँद हो गया है। उसके आगे लिखी थीं कितनी स्मृतियाँ मेरे-तुम्हारे साथ की। उन कहानियों-उपन्यासों की जिनमें कितनी बार तुमने मुझे सुनसान सड़क पर लैम्प-पोस्ट की पीली रोशनी में अकेला खड़ा कर दिया है और मैं गहरी बारिश में आसमान और पीली रोशनी को देखता घंटों विस्मृत सा भीगता रहा हूँ। वो सारी स्मृतियाँ शब्द-शब्द लिखीं थी पर देखो तो सब मिलकर पतंग बन गयी हैं।

तुम्हारे नाम से जो डोर लिपटी है वो शायद ऊँचे पहाड़ की कोई गहरी स्मृति है। जहाँ सर्दियों का मौसम अपने चरम पर है और हम साथ मिल कोई चाय की गुमठी तलाश रहे हैं।

याद है वो पेड़ जो हमें उस पहाड़ी रास्ते पर गहरी धुँध में भी दूर से हाथ हिलाकर इशारे करता दिखाई दे जाता था? मैंने उसका चित्र बनाया था और तुम्हें जन्मदिन की बधाई लिख देने की कोशिश कर रहा था। पर स्मृतियाँ जो हैं न उनका एक सिरा न जाने कहाँ फँस गया है और शब्द-शब्द खुलता जा रहा है। आज के दिन तुमको प्रेम बहुत गहरा।

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मैंने एक बार निर्मल वर्मा को पुकारा सुख के क्षण में। वो चले आये। बोले ‘आह! कैसी यातना है इस एक क्षण में जिसको तुम सुख कहते हो।

मैंने मुस्कुराहट को उतार दिया अपने चेहरे से। और सपने के दरवाज़े को ज़ोर से धक्का मारकर तोड़ा। बाहर आया तो कमरे की खिड़की से एक कोयल के बोलने की आवाज़ लगातार मेरे कानों में आ रही थी। मुझे लगा शायद यही आवाज़ वो सुखद यातना थी।

नींद की तरफ़ लौटा तो देखा मेरे सपने के दरवाज़े में दरारें थी। ..जन्मदिन मुबारक़!

(कवि, लेखक, कलाकार सौरभ अनंत की फेसबुक वॉल से साभार)


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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