Jwala Devi Temple : हमारा देश संस्कृति, समृद्ध और विविधता से भरी है। देश के हर कोने में धार्मिक स्थल है, जहां सालों भर लोगों की आवाजाही लगी रहती है। ऐसे बहुत से मंदिर स्थित है, जोकि विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। वहीं, मां दुर्गा के भी भक्तों की कमी नहीं है। उनके ऐसे बहुत से धाम है, जहां सालों भर भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। उनमें से एक ज्वाला देवी मंदिर भी है।
जैसा कि नाम सुनते ही पता चलता है कि यहां पर ज्वाला से संबंधित कोई पौराणिक कथा जुड़ी होगी। चलिए आज आपको विस्तार से इस मंदिर के बारे में बताते हैं।
हिमाचल में स्थित (Jwala Devi Temple)
ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीदार पहाड़ी के बीच में स्थित है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां की जलती हुई अग्नि कभी भी शांत नहीं होती। इसलिए इस मंदिर में ज्वलंत मुख वाली देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी का घर माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था, लेकिन इसका पुनर्निर्माण 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने मिलकर किया था।
मंदिर की खासियत
मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर बिना तेल और बाती के सदियों से जल रही है, जो मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती है। इस जलती हुई ज्वाला के पीछे का सच आज तक कोई भी नहीं जान पाया है। वैज्ञानिक इस बात को पता करने में जुटे हैं, लेकिन वह सफल नहीं हो पाते हैं कि बिना तेल और बाती के बिना यह ज्वाला कैसे जल रही है।
मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा गया है कि इस मंदिर की ज्वाला तभी शांत होगी, जब कलयुग का अंत होगा। साथ ही ऐसी मान्यता है कि यहां भक्त द्वारा मांगी गई हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)