Sahityiki : साहित्यिकी में पढ़िये मुंशी प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘ईदगाह’

Sahityiki : आज शनिवार है और ईद भी..तो इस मौके पर प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ से मौजूं और क्या हो सकता है। इस कहानी में हामिद नाम के छोटे से बच्चे के जरिए जो संदेश दिया गया है, वो मानवीय संवेदनाओं और जीवनगत मूल्यों के तथ्यों को बहुत ही मार्मिकता के साथ प्रस्तुत करता है। ये कहानी बाल मनोविज्ञान को समझने के लिए भी एक ज़मीन देती है और इसमें निश्छल प्रेम और परवाह जैसे भावों को बहुत ही सुंदर रूप में पिरोया गया है।

ईदगाह

रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आई। कितनी सुहानी और रंगीन सुब्ह है। बच्चे की तरह पुर-तबस्सुम दरख़्तों पर कुछ अ’जीब हरियावल है। खेतों में कुछ अ’जीब रौनक़ है। आसमान पर कुछ अ’जीब फ़िज़ा है। आज का आफ़ताब देख कितना प्यारा है। गोया दुनिया को ईद की ख़ुशी पर मुबारकबाद दे रहा है। गाँव में कितनी चहल-पहल है। ईदगाह जाने की धूम है। किसी के कुरते में बटन नहीं हैं तो सुई-तागा लेने दौड़े जा रहा है। किसी के जूते सख़्त हो गए हैं। उसे तेल और पानी से नर्म कर रहा है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैंकड़ों रिश्ते, क़राबत वालों से मिलना मिलाना। दोपहर से पहले लौटना ग़ैर-मुम्किन है।

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About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।