Single’s Day 2022 : सिंगल्स डे पर मनाइये अकेले रहने का जश्न, जानिये कैसे हुई इस खास दिन की शुरुआत

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। अभी तक आपने वेलेंटलाइन डे, फॉदर्स डे, मदर्स डे, फ्रेंडशिप डे के बारे में तो सुना होगा, लेकिन क्या कभी सिंगल्स डे (Single’s Day 2022) के बारे में सुना है। अगर नहीं सुना तो बता दें कि आज यानी 11 नवंबर को सिंगल्स डे है। दरअसल इसे मनाने की शुरुआत चीन में हुई और फिर धीरे धीरे ये सारी दुनिया में मनाया जाने लगा। चीन में आज के दिन छुट्टी होती है और कई तरह के ऑनलाइन ऑफर्स की भरमार रहती है।

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1993 में नानजिंग विश्वविद्यालय (Nanjing University) में कुछ छात्रों के मन में अकेले रहने की एकरसता को दूर करने के लिए सिंगल्स डे मनाने का विचार आया। छात्रों के समूह ने ‘एकल’ होने को एक जश्न के रूप में मनाने का सोचा और यही से इसकी शुरुआत हुई। 11/11 का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि ये चार एकल का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें चार अकेले 1 आते हैं। हालांकि इसकी शुरुआत एक व्यंग्यात्मक और मज़ाकिया रुप में हुई थी लेकिन धीरे धीरे लोगों को ये समझ में आया कि सिंगल रहने को भी सेलिब्रेट किया जाना चाहिए और इसके बाद इस दिन को भी बाकी खास दिनों की तरह जश्न के रूप में मनाया जाने लगा। कई लोग इसे ‘बैचलर्स डे’ (bachelor’s day) भी कहते हैं। साल 2009 में अलीबाबा के सीईओ ने इस दिन 24 घंटे के शॉपिंग हॉलिडे फेस्टिवल के रूप में मनाए जाने की घोषणा की और उसके बाद के सिंगल्स डे पर दुनियाभर में ऑनलाइन और ऑफलाइन शॉपिंग पर फभी ढेरों ऑफर आने लगे। आज के दिन सिंगल लोग पार्टी करते हैं, अपने जैसे लोगों से मिलते जुलते हैं और अकेले रहने का उत्सव मनाते हैं।

कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ज्यादातर जगहों पर शादी और परिवार को सामाजिक मान्यता मिली हुई है इसलिए इसे एक सार्वभौम तथ्य के रूप में स्वीकारा गया कि हर किसी का कोई साथी होता है। पहले हम अपने माता पिता भाई बहनों के साथ रहते हैं और फिर प्रेम या शादी के बाद अपने पार्टनर के साथ। लेकिन जरुरी नहीं कि सभी के साथ यही स्थिति बने। कई लोग अपनी मर्जी से अकेले रहना चुनते है और कई लोग परिस्थितिवश भी अकेले हो जाते हैं। लेकिन अकेले रहने का मतलब ये नहीं होता कि जीवन में कोई उम्मीद, उत्साह, रंग या आनंद नहीं है। बल्कि अकेले रहने के कई दूसरे फायदे भी हैं जिनमें अपने जीवन पर पूर्ण अधिकार और सारे फैसले लेने के साथ एक ‘स्व’ की भावना का विकास भी है। अध्यात्म भी यही कहता है और कई धर्मों में भी उल्लेख है कि मनुष्य अकेला जन्मा है और अंतत: अकेला ही इस संसार से जाएगा। इसलिए चाहे जो स्टेटस हो..जीवन को भरपूर जीना चाहिए यहीं मूल मंत्र है।

 

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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