Shipra River: 1 महीने में शिप्रा में डूबी 6 जिंदगी, आंखे मूंदे बैठा प्रशासन, कौन लेगा हादसों की जिम्मेदारी?

Diksha Bhanupriy
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Shipra River Ujjain: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में बहने वाली शिप्रा नदी पुण्य सलिला, मोक्षदायिनी और त्रिभुवन वंदिता समेत कई नामों से प्रसिद्ध है। उज्जैन पहुंचने वाले श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करने के मकसद से तो यहां आते ही है। लेकिन शिप्रा में स्नान कर डुबकी लगाना भी उनके सबसे जरूरी कामों में शामिल होता है।

कहा जाता है कि शिप्रा मोक्षदायिनी है और इस में डुबकी लगा लेने भर से व्यक्ति को अपने सभी बुरे कर्मों और पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है। लंबे समय से शिप्रा शुद्धिकरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जिस पर शासन प्रशासन द्वारा समय-समय पर तरह-तरह के निर्णय लिए गए हैं। शिप्रा शुद्धिकरण के साथ आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण विषय है। जिसके बारे में प्रशासन द्वारा उचित व्यवस्था किए जाने का दावा किया जाता है। लेकिन इन दिनों जो हालात दिखाई दे रहे हैं उससे शिप्रा शुद्धिकरण और संरक्षण तो दूर यह जाहिर है कि आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के प्रति प्रशासन बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। एक महीने में 6 लोग नदी में डूबने से अपनी जान गंवा बैठे हैं।

डूबा कोटा से आया छात्र

शिप्रा नदी में श्रद्धालुओं के हादसे का शिकार होकर जान गवाने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। हाल ही में कोटा से उज्जैन दर्शन करने के लिए पहुंचा 12वीं का छात्र पैर फिसलने के चलते गहरे पानी में चला गया और उसकी मौत हो गई। युवक अपने दोस्तों के साथ रविदास घाट पर प्लेटफॉर्म के पास रस्सी पकड़ कर नहा रहा था। पैर फिसलने से उसका हाथ छूट गया और वह गहरे पानी में चला गया।

नहीं मिला उपचार

जिस छात्र की नदी में डूबने से मौत हुई है उसके दोस्तों का कहना है कि नदी पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। यही वजह है कि हमने हमारे दोस्त को अपनी आंखों के सामने खो दिया। उन्होंने यह भी बताया कि पानी से निकालने के बाद उसे मौके पर प्राथमिक उपचार भी नहीं मिला। शायद उपचार मिल जाता तो उसकी जान बच जाती।

तैराक खुद भी गंवा बैठा जान

शिप्रा नदी में स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु तो हादसे का शिकार हो ही रहे हैं। लेकिन हैरानी उस समय हो जाती है जब सैकड़ों लोगों की जिंदगी बचाने वाला एक प्रशिक्षित तैराक प्रशासन की घोर लापरवाही का शिकार हो जाए।

बीते दिन यह नजारा उस समय देखने को मिला था जब रामघाट पर तैराक अर्जुन कहार की लाश नदी के पानी में तैरती मिली थी। वह एक बहुत अच्छा तैराक था और अब तक कई लोगों की जिंदगी बचा चुका था। लेकिन नदी के अंदर रस्सी से बंधी हुई टूटी फूटी रेलिंग की रस्सी में पैर फंसने की वजह से वह हादसे का शिकार हो गया और अपनी जान गंवा बैठा। अर्जुन से पहले इस महीने 4 श्रद्धालु नदी में डूब चुके हैं।

कौन लेगा जिम्मेदारी?

शिप्रा शुद्धिकरण, संरक्षण समेत स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और उन्हें तमाम तरह की सुविधाएं प्रदान करने के जो दावे शासन प्रशासन द्वारा किए जाते हैं, उनका पूरा होना तो दूर की बात है। लेकिन इस समय जो सबसे बड़ा सवाल है, वो ये है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि जो शिप्रा स्नान के लिए आने वाले लोगों की सुरक्षा के प्रति आंखें मूंद कर बैठे हैं। आखिरकार उनकी इस अनदेखी और लापरवाही का शिकार कब तक आने वाले श्रद्धालु और नागरिक होते रहेंगे और किसी की जिंदगी का सौदा कब तक आर्थिक सहायता और मुआवजे के नाम पर किया जाता रहेगा? लगातार हो रहे हादसों की जिम्मेदारी कौन अपने कंधों पर लेगा? जो टूटी फूटी रेलिंग रस्सियों के सहारे बांध कर श्रद्धालुओं की सुरक्षा का दावा किया जा रहा है। उसे कब ठीक तरह से लगा कर वाकई में सुरक्षा पुख्ता की जाएगी?


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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” इसी उद्देश्य के साथ मैं पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मुझे डिजिटल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कॉन्टेंट राइटिंग करना जानती हूं। मेरे पसंदीदा विषय दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली समेत अन्य विषयों से संबंधित है।

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