सेंधवा, डेस्क रिपोर्ट। हिन्दू धर्म में आस्था को सर्वोपरी माना गया है और हालात कभी-कभी ऐसे हो जाते हैं कि लोगों की आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो जाती है। कुछ ऐसा ही मामला हालही में मध्यप्रदेश के कई जिलों में देखने को मिला। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा वीडियो जिसमें भगवान शिव की सवारी नंदी को तरल पदार्थ जैसे पानी, दूध या फिर गन्ने का रस पिलाया जा रहा है। ये वीडियो वायरल होने के बाद प्रदेश के कई जिलों में मौजूद मंदिरों में लोगों की भीड़ लगने लगी और लोग अपने-अपने घरों से जल लेकर मंदिर जाने लगे एवं नंदी महाराज को जल पिलाने लगे।
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मीडिया का रूख भी इस ओर गया और एवं इस घटना को भगवान का चमत्कार नाम दिया जाने लगा। लेकिन असल में अगर वास्तविकता की बात करें तो यह मात्र एक वैज्ञानिक तथ्य है, जिसे विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो पत्थरों में वैक्यूम पोर्च उत्पन्न हो जाते हैं, जिस वजह से पानी पत्थरों में सोखने लगता है या फिर अगर आप पानी को पत्थर से सिर्फ स्पर्श मात्र कर देते हैं तो पानी अपने आप पत्थर में सौखने लगता है और ऐसा लगता है कि जैसे कोई पानी पी रहा हो।
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प्रदेश में फैली अंधविश्वास की इस घटना को सेंधवा के शासकीय पीजी काॅलेज में रसायल विभाग के प्रोफेसर महेश बाविस्कर ने तथ्य के साथ पेश किया और बताया कि आखिर क्यों और किस तरह से नंदी महाराज जल ग्रहण किया। प्रोफेसर का कहना है कि यह धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न है, विज्ञान की दृष्टि से पत्थरों में निर्वाद छिद्र पैदा हो जाते हैं और गर्मी के कारण पानी का पृष्ठ तनाव भी कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में ऐसा होना बिलकुल भी सामान्य है और यह कोई चमत्कार नहीं है।
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वहीं शासकीय पीजी काॅलेज के फिजिक्स के विभाग प्रमुख डाॅक्टर बीडी श्रीवास्तव का कहना है कि भगवानों की प्रतिमाएं पत्थर की बनी होती हैं और पत्थर में बारीक-बारीक नलिकाएं होती हैं। पानी सरफेस टेंशन के कारण पानी पत्थर की नलिकाओं में रिस कर चले जाता है और प्रतीत होता है कि जैसे किसी ने पानी पी लिया हो। जबकि यह एक वैज्ञानिक कारण मात्र है और कुछ नहीं।