रूह वही रहती है, जुबां का रूप बदल जाता है: तलत अज़ीज़

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भोपाल। खान अशु।

जमाने बदलते हैं, रिवाज बदलते हैं, जुबां भी बदल जाती हैं… पुराने लफ्जों की जगह नए शब्द प्रचलन में आ जाते हैं और नए अल्फाज अदब से लेकर आम बोलचाल तक में अपना स्थान भी बना लेते हैं लेकिन इनकी असल रूह हमेशा कायम रहती है और वह बखूबी अपना काम हर दौर में करती रहती है।


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