अधर में लटका अतिथि विद्वानों का भविष्य, कैबिनेट मंजूरी के बाद भी नियुक्ति को तरसे

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। अतिथि विद्वानों के नाम पर मचे सियासी घमासान के बाद प्रदेश में भले ही सरकार बदल गई हो लेकिन अतिथि विद्वानों की किस्मत नहीं बदली। उच्च शिक्षा (Higher Education संभाल रहे महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों (Guest-Scholars) का भविष्य अधर में लटक गया है। 450 पदों की कैबिनेट से मंजूरी (Cabinet Approval) मिलने के बावजूद अबतक प्रदेश सरकार (MP Government) द्वारा कोई ठोक कदम नही उठाया गया है, जिसके चलते वे पिछले 10 महीने से बेरोजगारी (Unemployment) का दंश झेल रहे हैं। कई अतिथि विद्वान (Guest Faculty) तो मौत को भी गले लगा चुके हैं लेकिन आज तक उनकी सुनवाई तक नहीं हो पाई है।

संघ के अध्यक्ष वा मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह का कहना है कि आज भी हजारों अतिथि विद्वान बेरोज़गारी के कारण लगातार मौत को गले लगा रहें हैं लेकिन सरकारी उदासीनता बरक़रार है। उच्च शिक्षा विभाग (Higher Education Department) से च्वाइस फीलिंग का पत्र भी कुछ दिन पहले जारी किया गया था लेकिन बिना कारण बताए हटा लिया गया और प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पाई।उन्होंने मांग की है कि  बाहर हुए अतिथि विद्वानों को तत्काल व्यवस्था में लेने की प्रक्रिया शुरू करें।

800 पद रिक्त , फिर भी नही मिल रही नियुक्ति 
संघ के मिडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा है कि जहां दिवाली के दिन पूरे देश प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ खुशियां मनाई जाएगी। वहीं प्रदेश का सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा (Educated Man) उच्च शिक्षित (Highly Qualified) अतिथि विद्वानों का वर्ग लगातार बेरोज़गारी का दंस झेलते हुए आत्महत्या (Suicide) करने को मजबूर हो रहा है। आर्थिक बदहाली वा अनिश्चित भविष्य के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है। बिना देरी किए हुए 10 महीने से बाहर हुए अतिथि विद्वानों को व्यवस्था में लीजिए और पुनर्वास करें।मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के अतिथि विद्वान जो वर्षों से उच्च शिक्षा को अपने खून पसीने से दशको से सींचते आ रहे हैं लेकिन आज तक सरकार इनके उद्धार के लिए एक भी कदम नहीं उठाई है।सरकार तत्काल अतिथि विद्वानों के साथ न्याय करे।450 पदों की कैबिनेट से मंजूरी भी 8 महीने पहले ही हो चुकी है इसलिए सरकार इस पर तत्काल संज्ञान ले और विद्वानों के हित में ठोस कदम उठाए

आख़िर कब होगा होगा अतिथि विद्वानों के साथ अन्याय
संघ के प्रवक्ता डॉ मंसूर अली ने कहा कि अतिथि विद्वानों के साथ न्याय न कर पाना समझ से परे है जबकि वर्तमान,निवर्तमान हुक्मरानों को सरकार चलाने का लाइसेंस (License) जनता में अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर ही दिया है।सत्ता में आते ही अतिथि विद्वानों को भूल जाना एक परम्परा सी हो गई है।सरकार से मांग है कि तत्काल अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करें और अपने किए हुए वादों को पूरा करें।

बता दे कि लगातार विवादों में घिरी सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 (Assistant Professor Exam 2017) की नियुक्ति बिना जांच के हुई और इस विवादित नियुक्ति के कारण अतिथि विद्वान नौकरी से बाहर हुए।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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