नज़रिया : मुंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को होम क्वारेंटाइन करो!

Gaurav Sharma
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भोपाल डेस्क। जिस तरह से कोरोना अपने पैर पसार रहा है उससे साफ साबित होता है कि वायरस का नया स्ट्रेन न केवल खतरनाक बल्कि पावरफुल भी है। स्कूल, कॉलेज, सिनेमा, जिम पर एक बार फिर ताला जड़ गया है और प्रशासन वायरस की रोकथाम के लिए कर्फ्यू लगाने पर मजबूर है। प्रशासन का मानना है कि कर्फ्यू की मदद से संक्रमण की चेन को तोड़कर लोगों को बचाया जा सकता है। प्रशासन लोगों से मदद की बार बार गुहार भी कर रहा है और जिन जगहों पर स्थितियां भयावह हैं, वहां पर कड़े कदम भी उठा रहा है।

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हॉस्पिटल्स की स्थिति देखें तो मरीजों की संख्या ज्यादा है और बेड कम, जिसकी भरपाई  प्रशासन नए कोविड केयर सेंटर खोलकर कर रहा है। साथ ही लोगों को होम आइसोलेशन में दवाई और बाकी सुविधाएं देकर भी प्रशासन अपना फर्ज निभा रहा है। लेकिन कुछ लोग अभी भी परिस्थिति को नज़रंदाज़ कर प्रशासन की मदद करने की बजाए गैरजिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं। कुछ लोग अपनी प्राइवेट गाड़ियों में ऐसे राज्य जहां कोरोना की स्थिति गंभीर है वहां से पलायन कर अपने होम टाउन तो आ ही रहे हैं और होम क्वारेंटाइन होने की बजाए बाजार में घूमते देख जा रहे हैं। उनका यह रवैया न केवल गैरजिम्मेदाराना बल्कि खतरनाक भी साबित हो सकता है।

सबसे बड़ी बात यह है की महामारी के इस चरम पर भी प्रशासन द्वारा पलायन कर रहे लोगों के लिए कोई विशेष आदेश पारित नहीं किया गया है, जैसा पिछली साल किया गया था। ऐसे लोगों को चिन्हित कर होम क्वारेंटाइन का आदेश और इसका उल्लंघन करने वाले के लिए कड़े प्रावधान होने चाहिए। इस समय किसी भी प्रकार की चूक प्रशासन के किए कराए पर ना केवल पानी बल्कि पूरी सैनेटाइजर की बॉटल फेर सकती है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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