चुनाव प्रचार के आख़िरी दौर में नोटा वर्सेज ‘नो नोटा’ के कैम्पैन में उलझा मतदाता

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भोपाल।

मध्यप्रदेश का सियासी पारा अब चरम पर पहुंच चुका है। चुनाव में केवल पांच दिन बचे है। ऐसे में मतदाता नोटा वर्सेज ‘नो नोटा’ के कैम्पैन के भवंर में फंस गया है। चुनाव आयोग से लेकर राजनैतिक दलों की मतदातओं से यही अपील है कि अपने मतदान का सही उपयोग करे और नोटा का बटन ना दबाये।इसी बीच राजनैतिक दलों के लिए चुनौती बन रहा ब्रह्म समागम संगठन लोगों से नोटा का बटन दबाने की अपील कर रहा है। जगह-जगह इसकी पोस्टर लगी गाड़ियां सड़कों पर घूमती हुई नजर आ रही है। संगठन के इस कदम ने दलों में हड़कंप की स्थिति पैदा कर दी है।

दरअसल,विधानसभा चुनाव की हलचल के बीच भोपाल की सड़कों पर घूमती एक गाड़ी चर्चा का विषय बनी हुई है। गाड़ी पर तमाम बैनर-पोस्टर लगे हैं, उनमें मतदाताओं से नोटा का बटन दबाने की अपील की जा रही है। नोटा का ये प्रचार ब्रह्म समागम संगठन कर रहा है। हैरानी की बात तो ये है कि इसके लिए संगठन ने चुनाव आयोग से परमीशन भी ले रखी है।आयोग ने 6 प्रचार वाहनों की इजाज़त दी है। अब इन प्रचार वाहनों से  नोटा का प्रचार किया जा रहा है।इसके पीछे मुख्य कारण है  एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण।क्योंकि किसी भी दल ने अपने घोषणा पत्र में एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन या आर्थिक आधार पर आरक्षण जैसे मुद्दे पर कोई भी घोषणा या वचन नही दिया है। जिसके चलते संगठन में राजनैतिक दलों के प्रति आक्रोश है। 

चुनाव प्रचार के आख़िरी दौर में नोटा वर्सेज 'नो नोटा' के कैम्पैन में उलझा मतदाता

बता दे कि  प्रदेश भर में ‘नोटा’ की हवा है, सभी दल सबसे ज्यादा नोटा से डर रहे हैं। आरक्षण को लेकर गुस्से में नोटा को वोट देने की अपील की जा रही, अगर यही स्तिथि रही तो वोटों के बिखराव और ‘नोटा’ पर गिरने वाले वोट के बाद किसी एक पार्टी के खाते में स्पष्ट बहुमत आना भी मुश्किल हो सकता है।प्रदेश में पहले भी नोटा बड़ा उलटफेर कर चूका है, इसीलिए पार्टियों का डर भी जायज है। 

गौरतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2013 में राज्य की करीब 20 सीटों पर नोटा के कारण बड़ा उलटफेर हुआ था। यहां जीत-हार का अंतर 1,000 से 2500 वोटों तक था। प्रदेश की विजयपुर विधानसभा सीट पर करीब 2019 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था|  इस सीट से कांग्रेस के रामनिवास रावत 67,358 मतों के साथ जीते थे, अगर यह वोट बीजेपी को मिल जाते, तो चुनाव परिणाम बदल सकता था। नोटा ने जबलपुर पूर्व, जबलपुर पश्चिम और बरघाट, छिंदवाड़ा, छतरपुर, दिमनी, सैलाना समेत कई सीटों पर अपनी उपस्थिति से चौंकाया था।  विधानसभा चुनाव 2013 में नोटा बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया था।  तब भाजपा-कांग्रेस के 26 उम्मीदवारों की हार का अंतर नोटा से भी कम था। यानी वोटरों ने उम्मीदवारों के चयन से ज्यादा रुचि उनको खारिज करने में दिखाई। इन 26 उम्मीदवारों में 14 कांग्रेस और 12 भाजपा के थे। चार तो पूर्व मंत्री थे। इस बार सवर्ण आंदोलन और जयस की मौजूदगी के कारण नोटा के इस्तेमाल के ज्यादा आसार दिख रहे हैं।  

 


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