International Day For Older Persons, International Older Person Day : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोसेविन: ! चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम!!
अर्थात जो बुजुर्ग वृद्धजनों विनम्र और नित्य अनुभवी लोगों की सेवा करते हैं उनकी चार चीजें हमेशा बढ़ती रहती हैं -आयु, विद्या, यश और बल !
1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस
14 दिसंबर 1990 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में नामित किया। लेकिन भारत में वृद्धजनों की पूजा-अर्चना और उन्हें सम्मान देने का विधान तो हजारों वर्ष पुराना है। महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे उसे समय पांडव और कौरव दोनों ही उनके चरणों में जाकर खड़े होते थे और उनसे ज्ञान लेते थे।
उस समय भीष्म पितामह ने कौरवों की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि जो समाज, परिवार या व्यक्ति बुजुर्गों की बात नहीं मानता उसका पतन निश्चित है। आज के इस बदले हुए समाज में तकनीक बदल चुकी है, लोगों का जीवन का तरीका बदल चुका है, परिवारों का संगठन बदल चुका है लेकिन व्यक्ति का बूढ़ा होना और एक उम्र में अशक्त होना – प्रकृति का यह चलन नहीं बदला है। क्योंकि प्रकृति हम इंसानी समाज को किसी दायित्व से मुक्त नहीं करना चाहती। आज भी स्त्री मां बनती है, आज भी बच्चे पैदा होते हैं, आज भी बचपन से लेकर यौवन और फिर बुढ़ापे तक जीवन की सभी अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है।
वृद्ध व्यक्ति ज्ञान और अनुभव के अमूल्य स्रोत
हमने वैज्ञानिक अनुसंधान करके अपने समाज को बहुत सुविधा भोगी और तीव्र बना दिया लेकिन प्रकृति को नहीं बदल पाए। प्रकृति तो वैसी ही है। जीवन के चार चरणों में से वृद्धावस्था या वानप्रस्थ को कैसे रोका जा सकता है? वानप्रस्थ का अर्थ जंगल में जाना नहीं बल्कि परिवार के बीच सम्मान पूर्वक जीवन बिताना है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की कोई एक तिथि नहीं हो सकती बल्कि हर दिन उन अनुभवी और उम्रदराज लोगों के लिए समर्पित होना चाहिए जो हमें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और जिनकी वजह से हमारा वजूद है और आज तो जीवन की यह अद्भुत घटना एक सेलिब्रेशन बन चुकी है। क्योंकि दुनिया उम्र दराज हो रही है। दुनिया के बहुत से देशों में अनुभवी और बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ रही है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है लेकिन आने वाले 50 वर्षों में भारत में भी बुजुर्गों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने वाली है। यानी दुनिया प्रौढ़, अनुभवी और गंभीर होने की कगार पर है। क्योंकि जनसंख्या की उम्र बढ़ना एक सार्वभौमिक घटना है। विश्व का लगभग हर देश जनसंख्या में वृद्ध व्यक्तियों के आकार और अनुपात दोनों में वृद्धि का अनुभव कर रहा है और इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के शब्दों में हमें यह मानना पड़ेगा कि वृद्ध व्यक्ति ज्ञान और अनुभव के अमूल्य स्रोत हैं तथा उनके पास शांति, सतत विकास और हमारे गृह की सुरक्षा में योगदान करने के लिए बहुत कुछ है।
गुटेरेस का यह कथन बहुत कुछ कह रहा है जिसे हमें समझने की आवश्यकता है। शायद इसीलिए वर्ष 2023 के अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की थीम वृद्ध व्यक्तियों के लिए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के वादों को पूरा करना रखी गई है। जिसका मर्म यह है कि सभी वृद्ध व्यक्तियों सहित सभी व्यक्ति, अपने मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का पूरी तरह से आनंद लें। यह अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध जन दिवस का 33 वां संस्मरण है। हमारे देश में 33 कोटि देवी-देवताओं को पूजा जाता है। यह देवी-देवता जितने पूज्यनीय है उतने ही पूज्यनीय हमारे बुजुर्ग भी हैं। इसलिए बुजुर्गों के प्रति सम्मान और उनके स्वास्थ्य और सुविधा के प्रति सजगता बहुत जरूरी है। क्योंकि दुनियाभर में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या दोगुनी से अधिक होने का अनुमान है, जो 2021 में 761 मिलियन से बढ़कर 2050 में 1.6 बिलियन हो जाएगी। 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या और भी तेजी से बढ़ रही है।
वैश्विक स्तर पर, 2022 में जन्म लेने वाले शिशुओं के औसतन 71.7 वर्ष जीवित रहने की उम्मीद है, जो 1950 में जन्मे शिशुओं की तुलना में 25 वर्ष अधिक है। यानी जीवन जीने की संभावना जितनी बढ़ेगी उतनी ही संख्या वृद्ध व्यक्तियों की बढ़ती जाएगी। 2026 में केवल भारत में बुजुर्गों की संख्या 17.9 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में भारत की उस परम्परागत और सुंदर व्यवस्था की तरफ लौटना होगा जहां हर परिवार में बुजुर्ग अनिवार्य रूप से होते थे। अब जरूरी यह है कि हम अपने बड़े शहरों, गांवों और कस्बों, हर जगह बुजुर्गों के साथ रहकर जीना सीखें, उन्हें सम्मान देना सीखें। क्योंकि कभी हमें भी उम्र दराज होना है और आने वाली पीढ़ी को बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जरूरी है परिवार के संगठन को हमारी परंपराओं के अनुरूप बनाया जाए।