किस्सा-ए-अच्छे ख़ां उर्फ़ दास्तान-ए-केक

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यूं तो अच्छे मियां को चोंचलेबाज़ी कतई पसंद नहीं…ख़ासकर ये अंग्रेज़ी तारीख़ के हिसाब से पड़ने वाले..मनाए जाने वाले त्योहार वगैरह। जाने क्या तो मदर फादर डाटर डे-वे मनाते रहते हैं। और तो और..कमज़र्फ़ो ने मोहब्बत के लिये भी कोई ���िन तय कर रखा है। अब इसी अंग्रेज़ी मोहब्बत वाले दिन चमनपुरा वाले बगीचे में ढिल्लन साहब के लख्ते जिगर पड़ गये कुछ नामुराद लोगों के हत्थे..फिर तो उनकी जो धुलाई हुई कि सारी मुहब्बत-वुहब्बत भुला वो अपनी चची के घर भेज दिये गए…

तो अच्छे मियां को ये नये ज़माने के चलन शोशेबाज़ी ही लगा किये हमेशा। लेकिन पिछले कुछ दिन से हालात बदले-बदले से हैं। जबसे वो चौधरी साहब की दावत में शरीक़ हो लौटे हैं, उनका दिल कुछ नर्म नर्म सा..गुलाबी गुलाबी सा हो रा है। चौधरी साहब ने अपनी शादी की सालगिरह पे बुलाया था उन्हें, बाक़ी सारे इंतज़ाम तो अव्वल थे ही, लेकिन वो जो केक था न..बस उसी ने अच्छे मियां को लूट लिया। लाल और सफ़ेद मलाईदार केक पे कित्ते ख़ूबसूरत गुड्डा-गुड़िया बने हुए थे। चौधरी साहब और चौधराइन ने एक ही छुरी से जब वो केक काटा, तो वो छुरी अच्छे मियां के कलेजे में ही कहीं धंस सी गयी…

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अगले ही हफ़्ते बेगम साहिबा की सालगिरह है, अच्छे मियां सोच रए हैं कि इस दफ़े क्यूं न एक केक लाया जाए…

आख़िर कुछ तो वजह रही होगी भई…इन अंग्रेज़ों ने दुनिया पे हुक़ूमत की है, तो उनकी रवायतों का कोई तो तसल्लीबख्श कारण होगा ही। अब वो कारण ज़ाहिर भले न हो उन्हें, लेकिन केक ले आने में बुराई ही क्या है ? न हो तो मिठाई समझ खा लिया जाएगा। और इस बात को लेकर अच्छे मियां थोड़े जोश में इसलिये भी हैं कि उनकी बेगम ज़रा नए ख़यालात की हैं, सो डाँट खाने की गुंजाइश भी कम ही निकलती है…

तो साहब..चुनमुन बेकरीवाले से सब तय कर लिया गया। सफ़ेद रंग की किरीम वाला चोकोर केक जिसपे तीन तरफ़ गुलाब बने हुए हैं, सामने की ओर ख़ूबसूरत मेहराब है सुनहरे मोतियों से जड़ी हुई। अब किसी भी किसम का बुत बनवाना तो मुमक़िन नहीं..तो चौधरी साहब के यहां जैसी गुड़िया न मढ़वाई, लेकिन केक के ऊपर खूब सारे फल सजा दिये गए..बेगम साहिबा को मौसमी फल पसंद जो है बहुत…

सालगिरह वाली दोपहर जब बेगम थोड़ा ऊँघने को हुई तो मौक़ा देख अच्छे मियां केक ले आए। बड़ी सफ़ाई से केक को रसोई के पास वाले सामानघर के बड़े आले में छिपा दिया। तय किया कि शाम की चाय से पहले बेगम को सरपिराइज़ दिया जाएगा…

शाम होते न होते बेगम उठीं..रोज़ के मुताबिक़ मियां जी को आवाज़ लगाई और रसोई में जा चुकीं। यूं तो रोज़ मियां जी तब तक भीतर न आते जब तक चार आवाज़ों के बाद बेगम साहिबा की घुड़की न सुनाई पड़ जाये, लेकिन आज तो इसी बुलव्वे का इंतेज़ार था। सो मियांजी ये पहुँचे वो पहुँचे। रसोई में जा बीवी से बोले – सामानघर से नये वाले कप-बशी तो ले आओ ज़रा, आज नये प्यालो में चाय पीने का जी चाह रहा है…

बीवी ने आग नज़रों से देखा और बोली – तुम्हारे हाथ में तो न लगी लेकिन जो दो-चार बाल बचे हैं वो ज़रूर मेहंदी से लाल हो चुके, अब इस उम्र में घर के भीतर बैठ नये प्यालों का शौक़ चर्राया है..ज़रूर कोई खुराफ़ात चल रही तुम्हारे दिमाग़ में…

अच्छे मियां ने जोश को काबू में किया और खुशामद कर बोले – ज़रा चार कदम ही तो चलना पड़ेगा बेगम, वो बड़े आले में ही रख छोड़े हैं नये प्याले, उठा ही लाओ न…

बड़े वाले आले में तो चूहों ने कब्ज़ा कर रखा है कबसे, पिछले महीने ही उसका सारा सामान मैं हटा चुकी हूँ। छह महीने से कह रही हूँ तुम्हें चूहे मारने की दवा ले आओ..पिंजरा ले आओ, लेकिन तुम्हें मेरी बात सुनाई ही कब देती है। उसपे अब नये प्यालों का शौक़ चढ़ बैठा, तौबा है..मुझसे न खोजा जाएगा नये प्यालों का बक्सा, जो तुम्हें चाहिये तो ढूंढ भी तुम्हीं लाओ, मुझसे न होती यूं फ़िज़ूल मशक्कत…

बेगम की बात ख़त्म भी न हुई थी, मियां जी यूं लपके सामानघर की ओर जैसे बस जान निकलने को हो। बड़े आले में झांका तो धक से रह गया दिल…

इतिहास की किताब से बमुश्किल एक शब्द रटा था कभी..अवशेष। आज उससे असल वास्ता पड़ा। मुहब्बत से बनाए हुए..सजाए हुए..लाए हुए..छिपाए हुए..अरमान जगाए हुए केक के अवशेष छितरे पड़े हैं यहाँ-वहाँ। चूहों ने जमकर दावत उड़ाई, कुछ खाया ज़्यादा फैलाया..अब हर तरफ जूठन बिखरी है। आले की दीवार से लेकर पूरी फ़र्श केक की चिकनाई से सनी पड़ी  है…

कहाँ तो तय था बेगम को हाल-ए-दिल का सुनाना.. कहाँ अब हाल ये है किस तरह ख़ुद ही को बचाना ? जोश-ए-मोहब्बत आके ठहरी है सफ़ाई के इम्तेहान पर..वो भी बेगम की नज़रों से छुपके, वरना जो लानत मलानत होनी है उससे क्या वाक़िफ़ नहीं अच्छे मियां…

अच्छे मियां के केक इरादे, अच्छे मियां के नेक इरादे..बेदर्द चूहों ने कुतर दिए। ग़म-ए-जहाँ का हिसाब लेकर अच्छे मियां टूटे हुए प्याले में चाय पी रहे हैं, ज्यों पी रहे हो ज़हर का घूँट कोई…

चाय ख़त्म होते ही चूहे मारने की दवा लेने निकल पड़ी है अच्छे मियां की सवारी…

-श्रुति कुशवाहा (लेखिका वरिष्ठ पत्रकार है)



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