भोपाल।
लोकसभा में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। जल संकट और बिजली मुद्दे से घिरी सरकार अब तक हारे हुए दिग्गज नेताओं का भविष्य तय नही कर पाई है और अब सरकार के सामने चुनाव के दौरान भाजपा-कांग्रेस से आए नेताओं की भूमिका तय करना चुनौती बन गया है।हालांकि कांग्रेस नेताओ का कहना है कि अभी पार्टी की प्राथमिकता में विधानसभा में सरकार का बहुमत साबित करना है और सरकार के विस्तार में विधायकों को समायोजित करना है। ऐसे में इन नेताओं के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है।
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दरअसल, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान दर्जनों नेता भाजपा और बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। विधानसभा के दौरान कुछ को तो चुनाव लड़ने का मौका भी दिया गया था लेकिन सफल ना हो सके, ऐसा ही हाल लोकसभा चुनाव के दौरान रहा। अब चुंकी दोनों चुनाव खत्म हो चुके है, ऐसे में पार्टी के लिए इनकी भूमिका या भविष्य तय करना अहम सवाल बना हुआ है।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे सरताज सिंह और रामकृष्ण कुसमरिया ,तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी जैसे कई बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हुए थे। पार्टी ने इन इनमें से सरताज सिंह और मसानी को चुनाव भी लड़वाया था लेकिन वे सफल ना हो सके। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी नेताओं के शामिल होने का सिलसिला जारी रहा। भाजपा से जीतेंद्र डागा, बहुजन समाज पार्टी से फूलसिंह बरैया, लाखन सिंह बघेल, लोकेंद्र सिंह राजपूत, साहब सिंह गुर्जर कांग्रेस में शामिल हो गए।पार्टी ने इनका इस्तेमाल लोकसभा में किया लेकिन कोई खास असर नही रहा, मोदी मैजिक के आगे सब फीके पड़ गए। वही कांग्रेस से बागी होकर विस चुनाव में उतरे जेवियर मेढ़ा की पार्टी में वापसी हुई थी।।
इसी तरह ग्वालियर ग्रामीण के साहब सिंह गुर्जर व करेरा क्षेत्र के लाखन सिंह बघेल के कांग्रेस में आने का ग्वालियर लोकसभा सीट पर असर दिखाई नहीं दिया। पार्टी ने इनका सार्वजनिक मंचों पर प्रचार के लिए इस्तेमाल तो किया लेकिन संगठन में अभी तक कोई जगह नहीं दी है। इन सभी नेताओं की कांग्रेस संगठन में भूमिका तय नहीं की गई है, जबकि विधानसभा के दौरान प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सैकड़ों की तादाद में पदाधिकारियों की नियुक्तियां की थीं। आने वाले दिनों मे नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होने वाले है, ऐसे मे इन नेताओं क��� भूमिका पर सवाल खड़े होना शुरु हो गए है, अब देखना है कि लोकसभा विधानसभा की तरह पार्टी इनका अपने फायदे के लिए प्रदर्शन करती है या फिर संगठन में जिम्मेदारी देकर नई दिशा देती है।