उस्ताद शायर मिर्जा गालिब की पैदाईश के दिन को भूला शहर, अकादमी को भी नहीं आई याद

भोपाल। नवाबों, अदब और उर्दू साहित्य से ताल्लुक रखने वाले शहर भोपाल के लिए फख्र की बात कही जा सकती है कि यहां करीब दर्जनभर ऐसे लोग गुजरे हैं, जिन्होंने मिर्जा गालिब से शागिर्दी हासिल की है। उर्दू और अदब की हिफाजत और उसके फरोग के लिए काम करेने वाली अकादमियां भी शहर में मौजूद हैं, लेकिन मिर्जा गालिब के पैदाईश के दिन 27 दिसंबर को उनके लिए किसी प्रोग्राम का न होना, उनकी रूह को तकलीफ पहुंचाने वाला साबित हुआ होगा।

27 दिसंबर 1797 में आगरा में पैदा हुए उस्ताद शायर मिर्जा गालिब का शहर-ए-भोपाल से गहरा ताल्लुक बताया जाता है। कमोबेश एक दर्जन ऐसे लोग इस शहर से गुजरे हैं, जिन्हें मिर्जा गालिब से शागिर्दी का फख्र हासिल हुआ है। मिर्जा की शायरी और उनके किरदार से वाबस्ता लोगों ने उनके कलाम और उनकी शेर-ओ-गजल को अपने हुनर में शामिल किया और इससे उन्हें देश-दुनिया में एक खास पहचान मिली है। मिर्जा गालिब के मजमुआ के पेश लफ्ज लिखने वाले डॉ. अब्दुर्रेहमान बिजनौरी का आखिरी वक्त भी भोपाल में ही गुजरा है। उनकी कब्र अब भी यहां लालघाटी स्थित कब्रस्तान में मौजूद है। ऐसे में मिर्जा गालिब की पैदाईश के दिन 27 दिसंबर को राजधानी ने भुला दिया। इस दिन न तो शहर में गालिब के नाम पर न तो कोई प्रोग्राम हुआ और न ही उन्हें ख्रिराज-ए-अकीदत पेश करने के लिए कोई आगे आया। 


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