भारतीय समाज को कहानियों में उकेरने वाले कथाकार प्रेमचंद की पुण्यतिथि आज, कलम के सिपाही को सीएम मोहन यादव ने दी श्रद्धांजलि

प्रेमचंद को हम उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए याद करते हैं। बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि दी थी। उनकी लेखनी ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज को जागरूक करने का काम भी किया। प्रेमचंद की रचनाएँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी और उनका साहित्यिक योगदान अनमोल धरोहर के रूप में सदैव याद किया जाएगा।

Remembering Munshi Premchand

Remembering Munshi Premchand : आज उपन्यास सम्राट के नाम से प्रख्यात प्रेमचंद की पुण्यतिथि है। प्रेमचंद, हिंदी और उर्दू साहित्य के महान कथाकार हैं जिनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था। उनका निधन 8 अक्टूबर, 1936 को हुआ। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन उन्होंने साहित्य में “प्रेमचंद” के नाम से अपनी पहचान बनाई। आज उनकी पुण्यतिथि पर सीएम डॉ मोहन यादव ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है

प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज की समस्याओं, विशेषकर किसानों, गरीबों, और निम्न वर्ग की दुर्दशा को उजागर किया। उनकी कहानियाँ और उपन्यास समाज के शोषित, दलित, और मेहनतकश वर्ग की आवाज़ बने। वे ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया।

सामाजिक जागरूकता और सुधार

प्रेमचंद की प्रमुख रचनाओं में “गोदान”, “गबन”, “निर्मला”, और “कर्मभूमि” जैसे उपन्यास शामिल हैं। “गोदान” को भारतीय साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है, जो एक किसान की दुखद कहानी को बयां करता है। इसके अलावा, प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे “पूस की रात”, “बड़े भाई साहब”, और “ईदगाह” ने आम जनजीवन के संघर्षों को सरल और सजीव रूप में प्रस्तुत किया है।

प्रेमचंद ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त जातिवाद, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह और गरीबी जैसे मुद्दों को भी उकेरा। उनके लेखन में राष्ट्रीय आंदोलन और स्वराज की भावना की भी झलक मिलती है। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी रचनाओं में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को भी जगह दी।

प्रेरणा और प्रभाव

प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू साहित्य को एक नए आयाम तक पहुँचाया है। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं का अद्वितीय चित्रण है, जो आज भी पाठकों को प्रभावित करता है। उनकी भाषा सरल और सजीव होती थी, जो आम जनमानस तक सीधा संदेश पहुँचाती थी। उनके साहित्य को न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में सराहा गया है, और वे भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर माने जाते हैं। प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों का विभिन्न भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है, जिससे उनका साहित्य और उनके विचार व्यापक स्तर पर पहुँचे हैं।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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