Vivek Tankha, Vivek Krishna Tankha : ” पीड़ित मानवता की सेवा किसे कहते हैं, इसे कोई विवेक कृष्ण तन्खा से सीखे। नेता होकर भी नेताओं के विपरीत छल, कपट, झूठ, फ़रेब से परहेज करना और जो कहना उसको करके दिखाना जाति धर्म से ऊपर उठकर सच्ची मानवीय सेवा करने वाले विवेक तन्खा दरअसल सेवा के सागर हैं। समाजसेवा का उनका दायरा काफी व्यापक है। यही उनकी पहचान है, और इसी में वह सुकून महसूस करते हैं।”
कोई लोकप्रियता के लिए सियासत को चुनता है। कोई बुलंदियों तक पहुँचने तो कई बड़े बड़े पदों की लालसा को लक्ष्य बनाकर राजनीति में कदम रखता है। किसी को राजनीति के माध्यम से धन, दौलत, शोहरत व रूतबे की दरकार होती है तो कोई ठाठ बाट और शाही जिंदगी गुजारने सियासत को गले लगाता है.. लेकिन देश के सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता, भारत सरकार के पूर्व एडीशनल सालीसिटर जनरल, राज्य सभा सांसद विवेक कृष्ण तन्खा इसका अपवाद हैं।
करीब चार दशकों से पीड़ित मानवता की सेवा करने वाले विवेक तन्खा ने सेवा के दायरे को और व्यापक करने के लिए राजनीति की दुनिया में कदम रखा। यह बात अलग है कि आज भी उन्हें राजनीति के दांव-पेंच, छल कपट और झूठे आश्वासनों से नफ़रत है। उन्हें यह बात बिल्कुल पसंद नहीं कि किसी गरीब, मजबूर या जरूरतमंद का दिल बहलाने के लिए उसे उसे आश्वासन का झुनझुना थमा दिया जाए जो कर सकते हैं, वहीं कहेंगे जो कर नहीं सकते, उसके लिए साफ मना कर देते हैं। यही बेबाकी और साफ़गोई आपको अलग पहचान दिलाती है। अपने तो क्या विरोधी भी इस बात को मानते हैं कि सेवा, सच्चाई व भरोसा कोई तन्खा जी से सीखे।
मध्यप्रदेश के रीवा जिले में 21 सितंबर 1956 को जस्टिस राजकृष्ण तन्खा एवं श्रीमती रोहिणी तन्खा के परिवार में जन्म लेने वाले विवेक तन्खा ने जबलपुर को अपनी कर्म भूमि बनाया। यहाँ के क्राइस्ट चर्च स्कूल से हायर सेकंडरी व सेन्ट एलायसियस कालेज से ग्रेज्युएशन किया, उसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से विधि में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और लोगों को इंसाफ दिलाने वकालत शुरू की। इसके साथ ही पिता से विरासत में मिली समाज सेवा को आगे बढ़ाते रहे। सेवा भावना के चलते रोटरी क्लब ज्वाईन की। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1999 में सबसे युवा महाधिवक्ता बने
दिग्विजय सिंह के शासन काल में 16 फरवरी 1999 को मध्यप्रदेश के सबसे युवा अधिवक्ता बने। इस दोरान कई पेचीदा मामलों में सरकार को संकट से उबारने में अहम भूमिका निभाई। इसी साल हाईकोर्ट के सीनियर वकील के रूप में नामित किए गए। 15 नवम्बर 2003 को महाधिवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया। नवम्बर 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के दौरान एमपी और छत्तीसगढ़ के बीच मचे विवाद को सुलझाने व सुलह कराने में प्रमुख भूमिका निभाई।
प्राकृतिक आपदाओं में मसीहा बनकर उभरे। पूरब से पश्चिम और दक्षिण से उत्तर तक जब भी, जहाँ भी और जैसी भी आपदा आयी। विवेक तन्खा अपनी टीम के साथ वहां मदद के लिए पहुँचे। 22 मई 1997 को जबलपुर में आए विनाशकारी भूकम्प के बाद धाना गांव में भारी तबाही हुई, 66 परिवार घर से बेघर हो गए। तब आपने रोटरी के जरिए सभी 66 घरों का पुनर्निर्माण कर ग्रामीणों को उदास जिंदगी को दुबारा खुशियों से भर दिया।
उड़ीसा में पहुँचायी राहत
सन 2002 जब भूकम्प के बाद उड़ीसा में हाहाकार मचा था। तब आपने रोटरी टीम के दिल खोलकर जरूरतमंद लोगों की सहायता की और रेलवे के 18 बैंगन के मार्फत दवाएँ खाद्यान्न व अन्य राहत सामग्री पहुँचायी।
गुजरात व कश्मीर में भी दिखा मानवीय चेहरा
26 जनवरी सन 2002 को गुजरात के भुज में भूकम्प के रूप में आयी तबाही के दौरान विवेक तन्खा की टीम ने हर सम्भव लोगों की सहायता की। घायलों की तादाद ज्यादा होने के कारण वहां महीनों अस्थायी अस्पतालों के जरिए पीड़ितों को राहत दिलायी। सन 2005 में कश्मीर के उरी में भी भूकम्प पीड़ितों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए देश दुनिया में सुर्खियों में रहे
सदी की सबसे बड़ी कोरोना महामारी के कहर को कोन भूल सकता है। मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक आक्सीजन की कमी से ना जाने कितने लोग काल के गाल में समा रहे थे.. ऐसे संकट के समय विवेक तन्खा ने दोनों राज्यों में पर्याप्त मात्रा में सिलेण्डर उपलब्ध कराए। जिसके बाद आक्सीजन के अभाव में मौतों का सिलसिला धम गया।
आपको जन्म दिवस की ढेरों शुभकामनाएं
देश के अन्य कई शहरों में भी कोरोना पीड़ितों को मदद कर आपने देश दुनिया में मानवता की सेवा की जो मिसाल प्रस्तुत की वो अद्भुत है।