भोपाल डेस्क रिपोर्ट। 10 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह का एक संस्मरण उनके अधीनस्थ ओमप्रकाश शर्मा ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है। 29 साल पहले के इस संस्मरण में दिग्विजय सिंह की सहजता और सरलता के बारे में बताया गया है। इस संस्मरण में किस तरह से दिग्विजय ने मुख्यमंत्री बनते ही रेड कारपेट संस्कृति को खत्म करने की शुरुआत की, उसका ब्यौरा है।
वर्षों से दिग्विजय सिंह के अधीनस्थ काम कर चुके ओम प्रकाश शर्मा (निज सचिव,दिग्विजय सिह,पूर्व मुख्यमंत्री) उनके साथ नर्मदा यात्रा में भी सहभागी रहे हैं। दिग्विजय सिंह के जीवन के कई छुए अनछुए पहलुओं के बारे में ओम प्रकाश शर्मा समय-समय पर प्रकाश डालते रहे हैं। फेसबुक पर अपने एक संस्मरण में उन्होंने दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद के व्यवहार का विस्तृत वर्णन किया है। ओम प्रकाश शर्मा का आलेख जस का तस प्रस्तुत है
—–रेड कारपेट—-
“आपने यह रेड कार्पेट क्यों बिछाया? कृपा करके इसे हटा लीजिए। कतार बनाकर खड़ी आप सभी बहनें भी कृपया ऐसा न करें।” पांचवीं मंजिल से चलकर वे जैसे ही लिफ्ट से ग्राउंड फ्लोर पर उतरे तो उन्होंने अपने स्वागत में किये गए भारी तामझाम को देखते ही यह कहा।
मुख्य अतिथि के इतना कहते ही वल्लभ भवन के पीछे के खेल मैदान में बनाये गए मंच से लिफ्ट तक बिछाये गए रेड कार्पेट को कर्मचारियों और सुरक्षा बलों ने तत्काल हटा दिया। हाथों में फूलों की टोकरी लिए स्वागत के लिए खड़ी महिला कर्मचारियों की अपने युवा अतिथि पर पुष्पवर्षा करने की हसरतें अधूरी रह गई। मुख्य अतिथि के इस व्यवहार को देखकर सब एक दूसरे की ओर देखने लगे।
“अध्यक्ष महोदय, कृपया आप मेरा ऐसा भव्य स्वागत न करें।” मुख्य अतिथि ने इस घटनाक्रम से असहज और घबराए हुए कर्मचारी संघ के अध्यक्ष की ओर मुस्कराते हुए यह कहकर उन्हें पल भर में सहज कर दिया था। मुख्य अतिथि जैसे ही स्वागत मंच पर पंहुचे तो कर्मचारियों से खचाखच भरे हाल में सन्नाटा था। सभी लोग मुख्य अतिथि के स्वभाव और मूड के बारे में अपने अपने अंदाज लगा रहे थे।
“पता नही कैसा आदमी है? भला कौन व्यक्ति ऐसा होगा जो अपने भव्य स्वागत से खुश न हो। लेकिन यह तो अजीब ही है। हमारे हाथों से फूलों की टोकरी अलग रखवा दी।” थोड़ी देर पहले स्वागत के लिए कतार बनाकर खड़ी महिला कर्मचारियों में से एक ने धीरे से फुसफुसाकर कहा।
“हाँ। हमने तो एक राजा की तरह इनके स्वागत का प्रबंध किया था। हो सकता है, उन्हें कोई कमी लगी हो, इसलिए नाराज होकर सब हटवा दिया। बड़े लोगों के सम्मान को जल्दी ठेस लग जाती है।”
दूसरी महिला कर्मचारी ने पहली की बात को आगे बढ़ाते हुए अपनी बात कही। तभी मंच का कार्यक्रम शुरू हो गया। कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ने मुख्य अतिथि को पुष्प गुच्छ, शाल और श्रीफल भेंट करके स्वागत किया।
मुख्य अतिथि के स्वागत में कर्मचारी संघ के अध्यक्ष महोदय ने भाषण दिया और रेड कार्पेट को हटवाने तथा पुष्पवर्षा नही करने देने को लेकर अपनी शिकायत भी प्रकट कर दी। कार्यक्रम में जब मुख्य अतिथि ने अपना उद्बोधन दिया तो उन सब कर्मचारियों के चेहरों पर छायी उदासी अद्भुत प्रसन्नता में तब्दील हो चुकी थी।
“मेरे प्यारे कर्मचारी भाइयों और बहनों। आपने यह सोचकर मेरे लिए रेड कारपेट बिछाया था कि आप “राजा” की तरह मेरा स्वागत करें, ताकि मुझे अच्छा लगे। मैं आपको आज बताना चाहता हूं कि देश 1947 मे आजाद हो गया था, और आजादी के साथ ही यह प्रजातंत्र बन गया। अब यहाँ सिर्फ प्रजा का शासन है। अब यहां ना कोई राजा है, और न ही सामंतवाद। इसलिए मैंने विनम्रता पूर्वक आपके उस खर्चीले स्वागत को अस्वीकार किया है। इसे आप अन्यथा न लें।” मुख्य अतिथि ने यह कहकर कर्मचारियों का दिल जीत लिया था। सभी लोग उनके इस व्यवहार की प्रशंसा कर रहे थे।
कर्मचारी संघ के तत्कालीन अध्यक्ष थे श्री बालकृष्ण शर्मा जी और मुख्य अतिथि थे 46 वर्ष के युवा मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी। जिन्होंने 7 दिसंबर 1993 को अपने पद की शपथ ली थी और इसके बाद मध्यप्रदेश सचिवालय कर्मचारी संघ द्वारा नए मुख्यमंत्री का मंत्रालय के उस खेल मैदान में स्वागत समारोह आयोजित किया गया था, जहां आज वल्लभ भवन-2 नाम की नई एनेक्सी बन गई है।
श्री दिग्विजय सिंह जी मे वह सहजता और सरलता आज भी जस की तस है। वे आज भी जिस मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में होते है, वहाँ न तो अपना फूलों से, ढोल-ढमाकों और आतिशबाजी से स्वागत करवाते है और न ही मंहगी साज सज्जा की अनुमति देते है। हाँ, आप चाहें तो एक अदद सूत की माला जरूर उन्हें खुशी खुशी भेंट कर सकते है। बीते 29 सालों में 1993 का आंकड़ा भले ही 2022 में तब्दील हो गया हो, लेकिन राघोगढ़ के राजपरिवार में जन्मे श्री दिग्विजय सिंह जी के जीवन की धारा सहजता, सरलता, सुलभता, सज्जनता, धर्मपरायणता और कर्तव्यपरायणता के मार्ग पर यथावत प्रवाहित हो रही है। आखिर राजनीति का संत सामंतवाद का श्रीमंत हो भी कैसे सकता है!
नोट: आज मंत्रालय में वरिष्ठ सदस्यों के साथ चर्चा में एक प्रत्यक्षदर्शी वरिष्ठ साथी ने वर्ष 1993 का मुझे यह प्रसंग सुनाया, जो यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।