जब आरक्षित कोच में जाने के लिए नहीं खुला दरवाजा, आयोग ने रेल्वे पर लगाया हर्जाना

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। एक महिला यात्री की 22 दिसंबर 2012 को झेलम एक्सप्रेस में गंजबासौदा से पुणे के लिए बी-1 कोच में तीन सीट की ट्रेन की कन्फर्म टिकिट थी, वह दो रिश्तेदारों के साथ पैर के इलाज के लिए पुणे जा रही थी। महिला सही समय स्टेशन पहुंची, सही समय पर ट्रेन प्लेटफार्म पर आई, लेकिन जिस कोच में महिला का रिजर्वेशन था उस कोच का दरवाजा ही नही खुला, काफी देर तक महिला और उसे छोड़ने स्टेशन आया उसका पति ट्रैन के कोच का दरवाजा खोलने के लिए दरवाजे पर हाथ मारते रहे लेकिन दरवाजा नही खुला इतने में ट्रेन का चलने का वक़्त हो गया, महिला जल्दबाज़ी में दूसरे कोच में चढ़ गई लेकिन इसी दौरान उनका पैर फिसला और वह गिर भी गई वही उनके पति को भी अपनी के पत्नी के साथ इस तरह की परिस्थिति में ट्रेन में चढ़ना पड़ा और फिर अगले स्टेशन पर उतरना पड़ा, इस तरह की परेशानी के बाद महिला ने जब रेल्वे में शिकायत की तो रेलवे ने इसे बेहद हल्के में लेते हुए महिला को ही शिकायत पर कोई कार्रवाई नही की, थकहार कर महिला ने आयोग का रास्ता चुना, जहां से उन्हें करीबन 9 साल बाद न्याय मिला।

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महिला ने इस संबंध में रेल प्रशासन से शिकायत की, लेकिन न्याय नहीं मिला। इसके बाद महिला ने जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका दायर की। आयोग ने उपभोक्ता के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए रेलवे को जिम्मेदार ठहाराया और यात्री को असुविधा के लिए मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 15 हजार रुपये और वाद व्यय के लिए 1500 रुपये देने का आदेश दिया। महिला ने अपने साथ हुई इस घटना की रेल प्रशासन से शिकायत की, लेकिन न्याय नहीं मिला। इसके बाद महिला ने जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका दायर की।


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Harpreet Kaur