पुलिस का अमानवीय चेहरा आया सामने, बांधे युवक के हाथ-पैर, जानिए पूरी वजह

Gaurav Sharma
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छतरपुर, संजय अवस्थी। जिले में पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आया है जंहा पुलिस द्वारा 1 युवक के हाथ पैर बांधकर कमरे में बंद कर दिया। मामला बमीठा थाना के सूरजपुरा गांव का है, जहां पुरवा में रहने वाले दो युवक काशीराम आदिवासी और पुष्पेन्द्र सिंह के बीच आपस में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। विवाद इतना बढ गया कि कई घंटो तक लोग तमाशा देखते रहे और परेशान होकर परिजनों ने डायल हंड्रेड को सूचना दी।

मौके पर पहुंचे डायल हंड्रेड के आरक्षक ने मामले को निपटाने की जगह युवक के हाथ पैर बांधकर उसे बंद कमरे में कैद कर दिया, तस्वीरों में आप देख सकते है किस तरह से आरक्षक संतोष प्रजापति लाल रंग के टीशर्ट पहने युवक को उसके कमरे की तरफ धकेलता हुआ लेकर जा रहा है और जब पास जाकर देखा गया तो युवक कमरे में हाथ पैरों से जकड़ा हुआ जमीन पर पड़ा था।

पुलिस द्वारा अमानवीयता की तस्वीरें बेहद चौकाने वाली है, डायल 100 के आरक्षक संतोष प्रजापति से जब उनके इस अमानवीय कृत्य पर बात की तो यूवक के नशे में धुत होने की वजह से उसे बांधकर कमरे में कैद करने की बात कह रहे है, वही पीड़ित अपने साथ हुए इस अमानवीय व्यवहार के बाद जमीन पर हाथ पैरों से जकड़ा रो रोकर खुद को बेगुनाह बता रहा है। हालांकि बाद में युवक को थाने ले जाया गया और दोनों पक्ष में आपसी सुलह हो गई। लेकिन डायल हंड्रेड जो लोगों को मुशीबत के समय पहुंचकर उन्हें इंसाफ दिलाने का काम करती है, वही पुलिस जब मानवता की हदे पार करने लगे तो कैसे लोगो को इंसाफ की उम्मीद रहेगी।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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