एसडीएम का मसाला फैक्ट्री पर छापा, पकड़ा धनिया में मिलाने वाली धान की भूसी और मिर्च में मिलाने वाला लाल रंग

Gaurav Sharma
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छतरपुर, संजय अवस्थी। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाजार से सब्जी में डालने वाला जो धनिया पाउडर आप खरीदकर लाते हैं, उसमें धान की फसल से बचने वाली भूसी का पाउडर मिलाया जाता है। लाल दिखने वाली मिर्च भी अपना प्राकृतिक रंग लिए नहीं होती, बल्कि उसे कैमिकल युक्त कलर से यह रंग दिया जाता है।

छतरपुर के फूलादेवी मंदिर के समीप एक ऐसी ही फैक्ट्री पकड़ी गई है, जो पिसे हुए मसाले का विक्रय करने के नाम पर जमकर मिलावट कर रही थी। मुखबिर की सूचना पर एसडीएम बीबी गंगेले एवं राजस्व व खाद्य विभाग की टीमों ने फैक्ट्री से बड़ी मात्रा में मिलावटी सामग्री जब्त की है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक छतरपुर निवासी राजू गुप्ता (बरसैयां) के द्वारा फूलादेवी मंदिर के समीप मुन्ना कबाड़ी के गोदाम के पास बने उर्मिला साहू के मकान में बगैर लाइसेंस एवं बगैर व्यवसायिक बिजली कनेक्शन लिए पिसे मसाले के निर्माण की फैक्ट्री चलाई जा रही थी।

इस फैक्ट्री में लगाई गई बड़ी चक्की से मसालों को पीसा जाता था। जब टीम यहां पहुंची तो इस फैक्ट्री में धान का बुरादा और कैमिकल युक्त कलर की कई बोरियां जब्त की गईं। प्रशासन की टीम ने सभी सामग्री जब्त कर इसका सेम्पल लिया है साथ ही बिजली विभाग और खाद्य विभाग को कार्यवाही के लिए निर्देशित किया है। यहां से 18 बोरी धान की भूसी और एक बोरी लाल रंग जब्त किया गया है। फैक्ट्री का मालिक राजू बरसैयां फिलहाल टीम को नहीं मिला है।

raid on factory doing adulteration

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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