‘अंडे के फंडे’ पर विराम : मुख्यमंत्री के फैसले पर क्या बोलीं मंत्री इमरती देवी, देखिये वीडियो

Gaurav Sharma
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डबरा,सलिल श्रीवास्तव| मध्यप्रदेश में अंडे पर जारी सियासत थमती हुई दिखाई दे रही है जहां एक ओर महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी आंगनवाडियों में अंडा बांटने की बात कह रही थी, वहीं अब फैसला हो गया हैं कि अब अंडे कि जगह दूध बांटा जाएगा, जिसकी शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितम्बर से होगी।

वहीं इस मामले में मंत्री इमरती देवी ने कहा हमारे मुख्यमंत्री ने जो अच्छी चीज मानी है वो हम देंगे। दूध तो ओर अच्छी चीज है, इससे हम कुपोषण दूर करेंगे,साथ ही उन्होंने ये भी कहा जो हमारे मुख्यमंत्री और डॉक्टर कहेंगे वो हम बच्चों को देंगे। साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कांग्रेसियों को अंडे से दर्द था दूध से नहीं होगा।

 

बता दें कि अंडे का फंडा तभी से लगातार जारी है जब इमरती देवी कांग्रेस शासनकाल में महिला बाल विकास मंत्री थी और उस समय उन्होंने कुपोषण मुक्त करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर अंडे बांटने की बात कही थी। तब भाजपा ने इस बात का पुरजोर विरोध किया था और इस मामले ने मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थी। समय बदला और इमरती देवी अब भाजपा से महिला बाल विकास मंत्री हैं। एक बार फिर अंडे का मामला गरमा गया और इमरती देवी ने फिर अंडे देने की बात दोहराई थी पर अब इस पर विराम लग गया है। भाजपा ने अंडे को इस लिस्ट से हटाते हुए अब आंगनवाड़ी केंद्रों पर दूध उपलब्ध कराने की बात कही है जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन से होगी।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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