सेवढा, राहुल ठाकुर। शासन की मंशा के अनुसार बच्चों में शिक्षा के साथ-साथ व्यवसाय की दिशा में वे अपना ध्यान आकर्षित कर सकें इसलिए भारत सरकार के द्वारा शासकीय विद्यालयों में व्यवसायिक शिक्षा के बढ़ावे के लिए योजना तैयार की गई है। लेकिन इस योजना का लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है।
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दरअसल सरकार द्वारा बच्चों में व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘शिक्षा को पढ़ाओ, रोजगार को बढ़ाओ’ व ‘बेरोजगारी को मिटाओ’ के उद्देश्य से योजनाएं चला रही है, लेकिन यह उद्देश्य महज कागजी दस्तावेजों और बैनर पोस्टरों में ही नजर आ रहे हैं और इस उद्देश्य का फल बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। ठीक ऐसी ही स्थिति सेवड़ा नगर में शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की बनी हुई है जहां प्राचार्य एमपी गुप्ता द्वारा व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विद्यालय की दीवारों पर बैनर तो लगा दिया लेकिन चयनित विषयों के शिक्षकों का नाम तक विद्यालय के टाइम टेबल में दर्ज नहीं है। जब मीडिया द्वारा टाइम टेबल देखने की कोशिश की गई तो बच्चों को कब कौन सा शिक्षक पढ़ाने का कार्य करता है यह तक मालूम नहीं चला। वहीं समय सारणी के बारे में पूछा गया तो ना तो बच्चे जवाब दे पाए और ना ही शिक्षक। ऐसे में शासन की मंशा के अनुसार संचालित की जाने वाली कई योजनाओं पर ऐसे शिक्षकों की वजह से ताला लगा हुआ है।
प्राचार्य समेत स्टाफ रहता है नदारद
सेवड़ा नगर का एक महज उत्कृष्ट विद्यालय केवल कागजों में ही उत्कृष्ट बनकर रह गया है। यहां जब से प्राचार्य एमपी गुप्ता पदस्थ हुए हैं तब से लेकर दिन प्रतिदिन उत्कृष्ट स्कूल गर्द में जा रहा है। वह लहार के मूल निवासी हैं जो अपनी मनमर्जी से स्कूल में आते हैं और चले जाते हैं। इसी कार्यशैली का अनुसरण अन्य स्टाफ के द्वारा भी किया जाता है, जिससे बच्चों की उपस्थिति विद्यालय में संचालित हो रही कक्षाओं में नहीं रहती है। जब मीडिया द्वारा कक्षा दसवीं के गणित संकाय के बच्चे से करीब 11:30 बजे क्लास रूम खाली होने की वजह पूछी गई तो शिक्षक ना आने की बात कही। इस तरह का रवैया शिक्षकों के द्वारा इस विद्यालय में किया जा रहा है जहां प्राचार्य तो अनुपस्थित रहते ही हैं वहीं शिक्षक भी प्राचार्य के कर्तव्य की प्रेरणा लेकर बच्चों के भविष्य को अंधकार में डालने का काम कर रहे हैं।
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शिक्षक अपनी मनमर्जी से आते हैं स्कूल
शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय में व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लाखों रुपए सरकार खर्च कर रही है वहीं स्थानीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारी भी उन्हें मॉनिटरिंग निरंतर कर रहे हैं। लेकिन यह निरंतर मॉनिटरिंग किस प्रकार की हो रही है यह समझ से परे है। जहां चयनित स्टाफ अपनी मनमर्जी से चलता है वहीं प्राचार्य के निर्देशों का पालन भी नहीं होता है। ऐसे में रीटेल शिक्षक पद पर पदस्थ प्रियंका श्रीवास्तव हमेशा गैरहाजिर रहती हैं, जिनकी गैर हाजरी में इनसे संबंधित सब्जेक्ट के छात्र किस तरह अपना अध्ययन का कार्य करते होंगे यह भी समझ से परे है। वहीं प्राचार्य द्वारा समय सारणी में उनका नाम तक उल्लेख नहीं किया गया है जिससे निरीक्षण के समय प्रियंका श्रीवास्तव का नाम पड सके। वहां मामले पर व्यावसायिक शिक्षा के नोडल अधिकारी विवेकानंद श्रीवास्तव का कहना है कि उक्त शिक्षकों की लिखित शिकायत करने पर ही वे कार्रवाई करेंगे। ऐसे में अब देखना होगा कि आखिर कब तक इस स्कूल के बच्चों को भविष्य अंधकार में रहेगा और कब इन शिक्षकों पर उचित कार्रवाई की जाएगी।