मिसाल : पिता को थी टीवी,दादा की हो गई किडनी खराब ,मन में ठाना जरूर बनूंगा डॉक्टर 

Atul Saxena
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छतरपुर, संजय अवस्थी। “जिद करो और दुनिया बदलो”,(jid karo Aur Duniya Badlo)ये स्लोगन आपने बहुत सुना होगा और पढ़ा होगा। हालाँकि ये स्लोगन दुनिया यानि समाज को बदलने की तरफ इशारा करता है लेकिन मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के एक छोटे से गांव के मजदूर के बेटे ने एक ऐसी जिद की जो उसके लिए नामुमकिन जैसी थी लेकिन अपनी मेहनत, लगन और समर्पण से मजदूर में बेटे ने ना सिर्फ अपनी जिद पूरी की बल्कि दूसरों के लिए एक मिसाल भी पेश की।

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है ये हकीकत है ,छतरपुर (Chhatarpur) के भंगवा के छोटे से गांव कुडलिया के पन्ना लाल अहिरवार की।  जिसने अपने परिवार की आथिर्क स्थिति खराब होने के बाद भी  मेडिकल की परीक्षा पास की  और उसका मेडिकल कॉलेज में एडमिशन भी  हो गया।  पन्ना लाल बचपन से पढाई में तेज था, लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह मेडिकल कॉलेज  तक पहुंच जाये ,लेकिन उसने परिश्रम नहीं छोड़ा जिसका सकारात्मक परिणाम भी सामने आया, अब उसके संघर्ष की कहानी लोगों  की जुबान पर है।

पन्ना लाल ने हर हाल में  डॉक्टर  की ठान ली थी, कारण था पिता और दादा जी की बीमारी।  पन्ना लाल ने बताया कि उसके पिता कटोरा अहिरवार मजदूरी करते हैं,   मां मकुलिया अहिरवार बीड़ी बनाकर घर का खर्चा चलाती है।  पन्ना लाल के पिता की दस साल पहले टीवी हो गई थी,उसी समय उसके दादा जी  की किडनी खराब हो गई थी,घर की हालत इतनी अच्छी नही थी कि दादा जी की किडनी बदलवा सके,  बाद में किडनी की बीमारी  के चलते उनकी मौत हो गई ,तब पन्ना लाल छठवीं  कक्षा में  पढ़ता था ,लेकिन उसने तभी ठाना कि  वह अब डॉक्टर  बनकर उन लोगों  की सेवा करेगा  जो पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पाते.,बाद में  कुछ समय बाद  शासकीय इलाज से पिता की टीवी ठीक हो गई।
पन्ना लाल ने भंगवा हाईस्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की उसके बाद उसने प्रदेश सरकार की सुपर 100 योजना में  88.83 प्रतिशत नंबर पाकर शामिल हुआ ,इसके बाद उसने इस योजना से ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई उसने भोपाल से की है इसके बाद उसने नीट की परीक्षा दी थी ,लेकिन उसका चयन नहीं  हो पाया था ,फिर इस साल उसने मेडिकल की नीट परीक्षा दी जिसमें  उसने 720 अंक में  से 501 अंक प्राप्त किये  ,जब उसने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन की फीस 40 हजार जमा करने थे वह उसके पास नहीं  थे ,तो उसके दसवीं  के टीचर जीवन लाल जैन से दस हजार रुपये उधार लिये और गांव वालों  से तीन प्रतिशत ब्याज पर तीस हजार का कर्जा लेकर यह फीस जमा की।  उसे शासकीय  सुभाष चंद बोस मेडिकल कॉलेज  जबलपुर में  एडमिशन मिल गया है वह आगे की मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई  के लिये एसबीआई घुवारा से ऐजुकेशन लोन के  लिये एप्लाई कर रहा है।

मिसाल : पिता को थी टीवी,दादा की हो गई किडनी खराब ,मन में ठाना जरूर बनूंगा डॉक्टर 

बहरहाल  पन्ना लाल ने  संघर्ष तो बहुत किया लेकिन उसका संघर्ष उन लोगों के लिए मिसाल बन गया है जो थोड़ी से परेशानी में हालात से हार मानकर बैठ जाते हैं और फिर अपनी किस्मत को दोष देते हैं।


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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