Gwalior News : सूनी रहेगी भाइयों की कलाई, सेन्ट्रल जेल में नहीं मनेगा रक्षाबंधन

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। भाई बहन के अटूट रिश्ते और प्यार के रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का इन्तजार साल भर दोनों को रहता है, हालत कैसे भी हो बहन भाई की कलाई पर राखी जरूर बांधती है।  ग्वालियर सेन्ट्रल जेल में भी ये परंपरा बरसों से चली आ रही है।  लेकिन कोरोना के कारण पिछले दो साल से जेल में रक्षाबंधन नहीं मनाया जा रहा है  और इस बार भी जेल प्रशासन (Jail Administration) ने रक्षाबंधन निरस्त कर दिया है।

ग्वालियर सेन्ट्रल जेल (Gwalior central jail ) में रक्षाबंधन के मौके पर उत्सव जैसा माहौल रहता था, जेल में बंद कैदी भाइयों की कलाई पर  उनके माथे पर तिलक करने के लिए उनकी बहनें सेन्ट्रल जेल पहुँचती थी। रक्षाबंधन वाले दिन जेल में करीब चार से पांच हजार लोगों की भीड़ जुटती थी जिसके लिए जेल प्रशासन को अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था करनी होती थी।  लेकिन कोरोना काल के कारण सरकार ने 2019 से मध्यप्रदेश की जेलों में मनाया जाने वाला रक्षाबंधन पर्व निरस्त कर दिया।

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हालाँकि अभी कोरोना पिछले दो सालों की तरह अधिक प्रभावशील नहीं है लेकिन संभावित तीसरी लहार को देखते हुए सरकार ने इस बार भी रक्षाबंधन पर्व पर होने वाली मुलाकात और राखी बांधने का कार्यक्रम निरस्त कर दिया है।  ग्वालियर सेन्ट्रल जेल प्रशासन करीब 10 दिन पूर्व इसकी सूचना सार्वजनिक कर चुका है। जेल अधीक्षक मनोज कुमार साहू द्वारा निकाले गए आदेश के तहत रक्षाबंधन वाले दिन 22 अगस्त को कोई भी बहन जेल में बंद अपने भाई को राखी नहीं बांध सकेगी इतना ही नहीं इस दिन रविवार होने के कारण सामान्य मुलाकात भी नहीं हो सकेगी नहीं होगी।

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ग्वालियर सेन्ट्रल जेल अधीक्षक मनोज कुमार साहू के मुताबिक रक्षाबंधन वाले दिन बहन और भाइयों की खुली मुलाकात होती थी, बहनें घर का बना खाना और मिठाई लेकर आती थी, पूजा की थाली में राखी लती थी और भाई की कलाई पर बांधती थी उसके माथे पर तिलक करती थी और भाई की संकल्प दिलाती थी कि वो अपराध का रास्ता छोड़ देगा , लेकिन कोरोना के चलते सावधानी बरतते हुए इस खुली मुलाकात और रक्षाबंधन पर्व को निरस्त किया गया है उन्होंने कहा कि कुछ NGO की महिलाओं ने जेल में बंद कैदी भाइयों को राखी बांधने की इच्छा जताई है तो जेल प्रबंधन इसकी व्यवस्था करेगा। इसमें भी कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जायेगा।

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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